बैठा हो जो दिल मे, वो यार होता है
बिना मांगे दी मदद, वो रिश्तेदार होता है।

आएगा धन, वो तेरी भूल है
आएगा जो, वही तो संसार है।



लिखा था जनता का, जनता को, जनता के लिये, संविधान में।

पर आज लुट रही, जनता, जनता से, जनता के लिये हमारे विधान में।

अच्छा, बुरा और बुरा, अच्छा लगने लगता है। पहले देखेगा कौन?
बदल तो सही अपना द्रष्टिकोण।
सोचेगा कौन? जो रहेगा मौन।

एक व्यक्ति मंदिर के बाहर रखी चप्पलों को चूम चूम कर रो रहा था,
और बोल रहा था प्रभु आप तो यहां हो, लोग आपको मन्दिर में याद कर रहे हैं।


कहता है वो जनता की भीड़ है।
सही तो है, यही तो भीड़ है।
उस भीड़ का तू भी हिस्सा है
जिंदगी का बस यही तो किस्सा है।

समस्या – *”बेटा, मेरी बहुएं मेरा कहना नहीं सुनती। सलवार सूट और जीन्स पहन के घूमती हैं। सर पर पल्ला/चुनरी नहीं रखती और मार्किट चली जाती हैं। मार्गदर्शन करो कि कैसे इन्हें वश में करूँ…”*

*समाधान* – आंटी जी चरण स्पर्श, पहले एक कहानी सुनते हैं, फिर समस्या का समाधान सुनाते हैं।

“एक अंधे दम्पत्ति को बड़ी परेशानी होती, जब अंधी खाना बनाती तो कुत्ता आकर खा जाता। रोटियां कम पड़ जाती। तब अंधे को एक समझदार व्यक्ति ने आइडिया दिया कि तुम डंडा लेकर दरवाजे पर थोड़ी थोड़ी देर में फटकते रहना, जब तक अंधी रोटी बनाये। अब कुत्ता *तुम्हारे हाथ मे डंडा देखेगा और डंडे की खटखट सुनेगा तो स्वतः डर के भाग जाएगा रोटियां सुरक्षित रहेंगी*। युक्ति काम कर गयी, अंधे दम्पत्ति खुश हो गए।

कुछ वर्षों बाद दोनों के घर मे सुंदर पुत्र हुआ, जिसके आंखे थी और स्वस्थ था। उसे पढ़ा लिखाकर बड़ा किया। उसकी शादी हुई और बहू आयी। बहु जैसे ही रोटियां बनाने लगी तो लड़के ने डंडा लेकर दरवाजे पर खटखट करने लगा। बहु ने पूँछा ये क्या कर रहे हो और क्यों? तो लड़के ने बताया ये हमारे घर की परम्परा है, मेरी माता जब भी रोटी बनाती तो पापा ऐसे ही करते थे। कुछ दिन बाद उनके घर मे एक गुणीजन आये, तो माज़रा देख समझ गए। बोले बेटा तुम्हारे माता-पिता अंधे थे, अक्षम थे तो उन्होंने ने डंडे की खटखट के सहारे रोटियां बचाई। लेकिन तुम और तुम्हारी पत्नी दोनों की आंखे है, तुम्हे इस खटखट की जरूरत नहीं। *बेटे परम्पराओं के पालन में विवेक को महत्तव दो*।

आंटीजी, *इसी तरह हिंदू स्त्रियों में पर्दा प्रथा मुगल आततायियों के कारण आयी थी*, क्योंकि वो सुंदर स्त्रियों को उठा ले जाते थे। इसलिए स्त्रियों को मुंह ढककर रखने की आवश्यकता पड़ती थी। सर पर हमेशा पल्लू होता था यदि घोड़े के पदचाप की आवाज़ आये तो मुंह पर पल्ला तुरन्त खींच सकें।”

अब हम स्वतन्त्र देश के स्वतन्त्र नागरिक है, राजा का शासन और सामंतवाद खत्म हो गया है। अब स्त्रियों को सर पर अनावश्यक पल्ला और पर्दा प्रथा पालन की आवश्यकता नहीं है।

घर के बड़ो का सम्मान आंखों में होना चाहिए, बोलने में अदब होना चाहिए और व्यवहार में विनम्रता छोटो के अंदर होनी चाहिए।

सर पर पल्ला रखे और वृद्धावस्था में सास-ससुर को कष्ट दे तो क्या ऐसी बहु ठीक रहेगी?

आंटीजी पहले हम सब लकड़ियों से चूल्हे में खाना बनाते थे, लेकिन अब गैस में बनाते है। पहले बैलगाड़ी थी और अब लेटेस्ट डीज़ल/पेट्रोल गाड़िया है। टीवी/मोबाइल/लैपटॉप/AC इत्यादि नई टेक्नोलॉजी उपयोग जब बिना झिझक के कर रहे हैं, तो फिर बहुओं को पुराने जमाने के हिसाब से क्यों रखना चाहती है? नए परिधान यदि सभ्य है, सलवार कुर्ती, जीन्स कुर्ती तो उसमें किसी को समस्या नहीं होनी चाहिए। जब बेटियाँ उन्ही वस्त्रों में स्वीकार्य है तो फिर बहु के लिए समस्या क्यों?

आंटी जी, “परिवर्तन संसार का नियम है”। यदि आप अच्छे संस्कार घर में बनाये रखना चाहते हो तो उस सँस्कार के पीछे का लॉजिक प्यार से बहु- बेटी को समझाओ। उन्हें थोड़ी प्राइवेसी दो और खुले दिल से उनका पॉइंट ऑफ व्यू भी समझो।

बहु भी किसी की बेटी है, आपकी बेटी भी किसी की बहू है। अतः घर में सुख-शांति और आनन्दमय वातावरण के लिए *जिस तरह आपने मोबाइल जैसी टेक्नोलॉजी को स्वीकार किया है वैसे ही बहु के नए परिधान को स्वीकार लीजिये। बहु को एक मां की नज़र से बेटी रूप में देखिए, और उससे मित्रवत रहिये।*

*”सबसे बड़ा रोग- क्या कहेंगे लोग”*, इससे बचिए, क्योंकि जब आपको सेवा की जरूरत होगी तो लोग कभी उपलब्ध न होंगे। आपको *’बेटे-बहु’* ही चाहिए होंगे।


*एक चाहत होती है… अपनों के साथ जीने की, वरना पता तो हमें भी है …कि मरना अकेले ही है!*”
*मित्रता एवं रिश्तेदारी*
*”सम्मान” की नही*
*”भाव” की भूखी होती है…*
*बशर्तें लगाव*
*”दिल” से होना चाहिए*
*”दिमाग” से नही.*


Maa aur baap k charno se hokar khushi milti h,
patni aur bete me etna pyar me takat nhi ki us khushi ko rok sake.

छप के बिकते थे जो अख़बार⚘⚘⚘

⚘सुना है इन दिनों वो बिक के छपा करते हैं”⚘⚘

एक ‘अजनबी’ एक आठ साल की बच्ची से स्कूल के बाहर मिला और उससे बोला – “तुम्हारी माँ एक मुसीबत में है इसलिये तुम्हें लाने के लिए मुझे भेजा है, मेरे साथ चलो।” उस बच्ची ने बिना झिझके पूछा – “ठीक है। पासवर्ड क्या है??”
इतना सुनते ही वह आदमी निरुत्तर होकर वहाँ से खिसक लिया!
दरअसल माँ बेटी ने एक पासवर्ड तय किया था जो आपातकाल में माँ के द्वारा भेजे गये व्यक्ति को मालूम होता।
बात छोटी सी है, परन्तु नन्हीं सी सूझ-बूझ बड़ा संकट टाल सकती है।।
अभिभावक, बच्चों को विद्यालयों में ‘मोबाईल’ नहीं दे सकते, मगर ‘पासवर्ड’ तो दे ही सकते हैं।
तो क्या विचार है । आपका


जिंदगी जीलो साहब..

बाकी एक दिन ऐसा आयेगा

कि आपके ही प्रोग्राम में

आपकी गैरहाजिरी होगी


पम्मी : तुम्हारे बेटे और बेटी की शादी हुई है। तुम्हारी बहू और दामाद कैसे हैं?
रम्मी : मेरी बहू तो बहुत बुरी है, रोज लेट उठती है और मेरा बेटा उसके लिए चाय बनाता है, घर का कोई काम नहीं करती और जब देखो मेरे बेटे से बाहर का खाना खाने के लिए कहती रहती है।
पम्मी : और तुम्हारा दामाद कैसा है?
रम्मी : मेरा दामाद तो फरिश्ता है, रोज मेरी बेटी को चाय बनाकर पिलाता है और वो आराम से उठती है, उसे घर का कोई काम करने नहीं देता और उसे अक्सर बाहर खाना खिलाने ले जाता है, ऐसा दामाद सबको मिले।

घर में अगर मच्छर ज्यादा हो गए हो तो
उन्हें अलग-अलग जाति-धर्म में बाँट दीजिये…
एक दूसरे को काटकर मर जायेंगे


आप कितने ही
अच्छे क्यों न हों,
ऐसा कभी नहीं होगा कि आपसे सब ख़ुश हों…!!

*क्या खूब लिखा है किसी ने*
*बीते कल का अफसोस और आने वाले कल की चिन्ता,*
*दो ऐसे चोर हैं..*
*जो हमारे आज की खूबसूरती को चुरा ले जाते हैं।*
*””सदा मुस्कुराते रहिये””*

मैंने भी बदल दिए है जिन्दगी के उसूल।✋🏽😎

अब🤢

जो याद करेगा सिर्फ वही याद रहेगा।