इक याद पुरानी आई फिर …

माँ कहती थी रोटी खाले
वरना कउआ ले भागेगा
थोड़ी सी चिड़िया को देना
चीं चीं सुन सुबह जागेगा

इक रोटी आज बची थाली की
छत पे सुबह फैंकी थी
अब रात को आके देखा तो
वैसी की वैसी रखी थी

कहां गया वो काला कउआ
कहां गई वो चिड़िया रानी
मिल के दोनों खिचड़ी बनांए
मैं जब सुनता था ये कहानी

तब वो मुझको दिखते थे
आता था मजा कहानी का
ये बात है बिल्कुल सच्ची
कहना होता था नानी का

अब कैसे अपने बच्चों को
वो फिर से कहानी सुनाऊं मैं
उनको दिखलाने आज कहां से
चिड़िया कउआ लांऊ मैं

फिर सुबह कान लगाए थे
चिड़िया की चीं चीं सुनने को
फिर कउआ कहीं से आएगा
मेरी रोटी ले जाएगा

ना चिड़िया है ना कउआ है
जाने वो कहां गए हैं फिर
फिर चिड़िया कउआ याद आए

इक याद पुरानी आई फिर …।।।

Parveen Sharma


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