फ़ीमेल-एक्सप्रेस….??

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एक औरत गुस्साती हुई,
स्टेशन मास्टर के पास आयी,
इक्कीसवीं सदी की रागिनी सुनायी…

महिलाओं के लिए तीस-प्रतिशत आरक्षण
का सिद्धांत, क्यूँ नहीं अपना रहे हो,
वर्षों से मेल-एक्सप्रेस चला रहे हो,
फीमेल-एक्सप्रेस क्यूँ नहीं ला रहे हो ?

स्टेशन मास्टर घबराया,
मुश्किल से जवाब दे पाया,
मैडम….. ‌ मैडम…..
मेल-एक्सप्रेस तो मेकअप,
करते-करते लेट हो जाती है,
फिमेल-एक्सप्रेस तो,
मेकअप ही करती रह जाएगी,
सवारी को कब पहुंचाएगी ?

और…..आज की रेल व्यवस्था में,
जहाँ लोग, मेल-एक्सप्रेस को रोककर
छेड़खानी करते हैं,
फीमेल-एक्सप्रेस के साथ तो,
जाने क्या हो सकता है,
इल्जाम में ड्राइवर फँस सकता है,
उसकी नौकरी जा सकती है,
ड्राईवर की पत्नी गुस्सा सकती है,

और फिर मैडम…..
अपना आँचल संभालिए
और दूसरा पहलू देखिए,

फीमेल-एक्सप्रेस चैन से न चल पाएगी,
बगल की लाइन के मेल-एक्सप्रेस उसे देखकर,
सीटी बजाएंगे, उनकी हेडलाइट बंद हो जाएगी,
ठौर पर वह रोते हुए ही पहुँच पाऐंगे,
वहाँ पर सिर्फ “मी टू” की फरियाद सुनाएंगे,

और भी परेशानी है….फीमेल-एक्सप्रेस,
ड्राइवर के साथ भाग सकती है,
सिग्नल-मैन का कहा, टाल सकती है,
रेल-एमप्लाई का कैरक्टर, बिगाड़ सकती है,
इमोशनल होकर, पटरी उखाड़ सकती है…!!

जबकि मेल-एक्सप्रेस,
सिर्फ मोशन में रहती है,
इमोशन में नहीं आती है,
देर से ही सही, पहुँच तो जाती है….!!!


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