“साब आधार कार्ड बनवाना है ।”
“पचास रूपये लगेंगे ।”
“लाया हूं ।”
“नाम ”
“धमेंदर ”
“पूरा नाम बोलो । ”
“ध र में द र ”
“अरे टाइटल क्या है तेरा ? वो जो नाम के अंत में होता है न सबका ,जैसे रणबीर में कपूर होता है आयुष्मान में खुराना होता है ।”
“अरे वो सब अमीर लोग हैं हम तो गरीब आदमी हैं। इतना ही नाम है अपना धमेंद्र ।”
“अच्छा ठीक ठीक है कुमार कर देता हूं । बाप का नाम बोलो ।”
“हरामी साला ”
“अबे औलाद हरामी होती है ,बाप थोड़े हरामी होता है ।”
“मुझको क्या मालूम मैंने जब पूछा मुझे तो माई ने यही बताया था हरामी साला । ”
“पी तो नहीं रखी कहीं तूने । कहाँ से आया है ।”
“प्लेटफार्म नंबर चार ।”
“माफ करना भाई , तेरा आधार कार्ड नहीं बन सकता ।”
“क्यों अपन भी तो इसी देश में जन्में हैं ? ”
“भाई आधार कार्ड सिर्फ इंसानों का बनता है और सरकार तुम जैसों को इंसान मानती ही नहीं । हाँ एकबार आधार बन जाए फिर तो कुत्ता बिल्ली कुर्सी टेबल सबसे लिंक करवा दूंगा ।”
“लेकिन भाई …”
“अरे नहीं कहा न , दिमाग मत चाटो । जाओ!”


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