ट्रेन गुजर रही थी स्टेशन पर..
तुम्हारी यादआई.
मालूम नहीं क्यूँ.
तुम्हें वो गाना याद है..
जो मैं अक्सर तुम्हें देख कर गुनगुनाया करता था.
तुझे ना देखूं तो चैन, मुझे आता नही है..
एक ऐसा भी दौर गुजरा है.
वाकई कैसे भूलना मुमकिन है.
याद है, तुम्हारे शहर में जब बारिश होती थी,
तो तुम मुझे बताती थी.
तुम्हारा शहर भीगा होगा वैसे फिर कभी या शायद नहीं.
मेरे बाद तुम्हारा शहर भी खाली हो गया होगा ना,
पता नहीं.
Fb से दूर हो, अच्छा कर रहे हो.
सच के लोग होते हैं असल ज़िंदगी में,
यहाँ तो सब काल्पनिक है.
अब भी तुम रहते हो मेरी बातों,
मेरे ख़यालों, मेरी कविताओं में कहीं.
पर ना जाने क्यूँ अब तुम मिलते ही नहीं.
कभी सोचता हुँ की फिल्म बनाऊँगा तो मेरे डायलॉग कोई नहीं लिख पाएगा तुम्हारे सिवा.
क्यूंकी तुम मेरे किरदारों को समझोगे,
जैसे मुझे समझते आए हो अभी तक.
अब तो ना जाने तुम कौनसी दुनिया में रहते हो
और मोहब्बत किसका नाम है.
तुम्हारे मेरे बीच में क्या है ये भी मालूम नहीं..
तुम कभी थे नहीं तो क्या है जिसकी कमी महसूस होती है.
तुम्हारी बातें सोच – सोच कर अब भी क्यूँ मुस्कुराता रहता हूँ.
किसी से रुठजाते हो,
तो अब किसे बताते हो.
मेरे जैसे कोई और ढूँढ लिया है क्या?
क्या हम तुम मिलेंगे
फिर कभी या फिर ट्रेन की पटरी की तरह साथ होकर भी अलग रहेंगे हमेशा…
तुम ही तो कहते थे ना कि हमारी मंज़िलें एक हैं
तो फिर रास्ते अलग – अलग क्यूँ हो गये…???


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