काश ! कुछ न कहते हुए भी हाल-ऐ-दिल बयां हो जाए,
बस एक शाम हमारी खामोशी के नाम हो जाए……
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काश ! कुछ न कहते हुए भी हाल-ऐ-दिल बयां हो जाए,
बस एक शाम हमारी खामोशी के नाम हो जाए……
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एक बात कहूँ
ये जो बोलते है ना हमे कोई फरक नही
पड़ता
वो अंदर से बहुत टूटे हुए होते है
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KitnA MushkiL HaI YeH ZindagI Ka SafaR KhudA Ne MARNA Haram KiyA HaI, LogoN Ne JEENA.
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माना के तेरे दर पर हम खुद चल के आये है,,,
ए-इश्क़
दर्द,
दर्द…
और बस दर्द ये कहाँ की मेहमान-नवाज़ी है…!!
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रात की तन्हाई मे अकेले थे हम,
दर्द की महफिलों मे रो रहे थे हम,
आप हमारे भले ही कुछ नही लगते,
पर फिर भी आपके बिना बिलकूल अधूरे है हम
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एक बीज “मोहब्बत “का क्या बो दिया…!!!
.
.
सारी फसल” दर्द “की काटनी पडी…!!!
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~Toot Kar Chubh Raha Hai Aankhon Main,
Aaina To Nahi Tha Khawab Mera .. ^
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~Tabeer Hii Sochtey Rahe Adhoore Khawabon Kii,
Aur Neend Ankhon Kii Dehleez Par Taraptii Reh Gaye .. ‘
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पता नही क्यो मेरे #रोने से उसे कोई फर्क नही पड़ता
जो कभी मेरी खामोशी पर रो #जाया करती थी
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Wohi hua na, Bichadne Pe Baat aa Pahunchi..
Tujhe kaha Tha, Purane Hisaab Rehne de…
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पहले मुझे लोग बहुत अच्छे लगा करते थे
फिर महसूस हुआ कि
मैं ही अच्छा था वो नहीं..
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~Hum To Agaaz’E-Mohabbat Mein Hi Lutt Gy,
Log Toh Kehte The Ke Anjaam Bura Hota Haii .. ‘
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धीरे धीरे बहुत कुछ बदल रहा है…
लोग भी…रिश्ते भी…और ,,,
…कभी कभी हम खुद भी…
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जब इल्ज़ाम लगा ही चुके हो जनाब,
तो अब हमारा हाल ना पूछो,
अगर हम बेगुनाह निकले,
तो अपने आप को माफ़ नहीं कर पाओगे
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दर्द से हाथ न मिलाते तो और क्या करते!
गम के आंसू न बहते तो और क्या करते!
उसने मांगी थी हमसे रौशनी की दुआ!
हम खुद को न जलाते तो और क्या करते!
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मोहब्बत का मेरे सफर आख़िरी है,
ये कागज, कलम ये गजल आख़िरी है
मैं फिर ना मिलूंग! कहीं ढूंढ लेना
तेरे दर्द का ये असर आख़िरी है…!!
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