कभी हम भी.. बहुत अमीर हुआ करते थे* *हमारे भी जहाज.. चला करते थे।*

*हवा में.. भी।*
*पानी में.. भी।*

*दो दुर्घटनाएं हुई।*
*सब कुछ.. ख़त्म हो गया।*

*पहली दुर्घटना*

जब क्लास में.. हवाई जहाज उड़ाया।
टीचर के सिर से.. टकराया।
स्कूल से.. निकलने की नौबत आ गई।
बहुत फजीहत हुई।
कसम दिलाई गई।
औऱ जहाज बनाना और.. उडाना सब छूट गया।

*दूसरी दुर्घटना*

बारिश के मौसम में, मां ने.. अठन्नी दी।
चाय के लिए.. दूध लाना था।कोई मेहमान आया था।
हमने अठन्नी.. गली की नाली में तैरते.. अपने जहाज में.. बिठा दी।
तैरते जहाज के साथ.. हम शान से.. चल रहे थे।
ठसक के साथ।
खुशी खुशी।
अचानक..
तेज बहाब आया।
और..
जहाज.. डूब गया।

साथ में.. अठन्नी भी डूब गई।
ढूंढे से ना मिली।

मेहमान बिना चाय पीये चले गये।
फिर..
जमकर.. ठुकाई हुई।
घंटे भर.. मुर्गा बनाया गया।
औऱ हमारा.. पानी में जहाज तैराना भी.. बंद हो गया।

आज जब.. प्लेन औऱ क्रूज के सफर की बातें चलती हैं , तो.. उन दिनों की याद दिलाती हैं।

वो भी क्या जमाना था !

और..
आज के जमाने में..
मेरे बेटे ने…
पंद्रह हजार का मोबाइल गुमाया तो..

मां बोली ~ कोई बात नहीं ! पापा..
दूसरा दिला देंगे।

हमें अठन्नी पर.. मिली सजा याद आ गई।

फिर भी आलम यह है कि.. आज भी.. हमारे सर.. मां-बाप के चरणों में.. श्रद्धा से झुकते हैं।

औऱ हमारे बच्चे.. ‘यार पापा ! यार मम्मी !
कहकर.. बात करते हैं।
हम प्रगतिशील से.. प्रगतिवान.. हो गये हैं।

कोई लौटा दे.. मेरे बीते हुए दिन।।

☔🙏
माँ बाप की लाइफ गुजर जाती है *बेटे
की लाइफ बनाने में……*
और बेटा status_ रखता है—
” *My wife is my Life*”
ईस पोस्ट को भेजने की कृपा करे जिससे सबके बचपन की याद की झलकिया आ



यदि कोई व्यक्ति आपको

ग़ुस्सा दिलाने में कामयाब रहता है

तो…

समझ लीजिए आप

उसके हाथ की कठपुतली हैं…!

अब राजा का बेटा राजा नही बनेगा
अब गाँधी का बेटा प्रधानमंत्री नही बनेगा
अब खान का बेटा सूपरस्टार नही बनेगा
अब करण जौहर टैलेंट का ठेकेदार नहि बनेगा

गरीब की इबादत को देख कर,
भगवान खुश हुए और पूछा की क्या चाहिए …??
.
.

भगवान भी शर्मिंदा हो गए जब उसने
कहा “रोटी” …!!


इंसानो की दुनिया मे बस यही तो रोना है, 

जज्बात अपने है तो जज्बात, 

दुसरे के हो तो खिलौना है

पानी फेर दो इन पन्नों पे, ताकी धुल जाये स्याही सारी..
जिन्दगी फिर से लिखने का मन होता है कभी-कभी..!!


लिखा था जनता का, जनता को, जनता के लिये, संविधान में।

पर आज लुट रही, जनता, जनता से, जनता के लिये हमारे विधान में।


पता_है_मैं_हमेसा खुश क्यों रहता हूँ ..?
क्योंकि,मैं अपने माॅ ओर बाप के सिवा किसी से कोई उम्मीद नहीं_रखता

वापिस नही आता, तीर चल जाने के बाद ..
कौन पुछेगा तुझे, ये हुस्न ढल जाने के बाद !!
बोलो वाह वाह

हर रिशते से नूर बरसेगा,
बस शर्त इतनी सी है कि
रिशतो मे शरारते करो
साजिशे नही


ईश्वर कहते है:-
उदास न हो मैं तेरे साथ हूँ
सामने नहीं आसपास हूँ
पलकों को बंद कर और दिल में याद कर
मैं कोई और नहीं तेरा विश्वास हूँ…!


समस्या – *”बेटा, मेरी बहुएं मेरा कहना नहीं सुनती। सलवार सूट और जीन्स पहन के घूमती हैं। सर पर पल्ला/चुनरी नहीं रखती और मार्किट चली जाती हैं। मार्गदर्शन करो कि कैसे इन्हें वश में करूँ…”*

*समाधान* – आंटी जी चरण स्पर्श, पहले एक कहानी सुनते हैं, फिर समस्या का समाधान सुनाते हैं।

“एक अंधे दम्पत्ति को बड़ी परेशानी होती, जब अंधी खाना बनाती तो कुत्ता आकर खा जाता। रोटियां कम पड़ जाती। तब अंधे को एक समझदार व्यक्ति ने आइडिया दिया कि तुम डंडा लेकर दरवाजे पर थोड़ी थोड़ी देर में फटकते रहना, जब तक अंधी रोटी बनाये। अब कुत्ता *तुम्हारे हाथ मे डंडा देखेगा और डंडे की खटखट सुनेगा तो स्वतः डर के भाग जाएगा रोटियां सुरक्षित रहेंगी*। युक्ति काम कर गयी, अंधे दम्पत्ति खुश हो गए।

कुछ वर्षों बाद दोनों के घर मे सुंदर पुत्र हुआ, जिसके आंखे थी और स्वस्थ था। उसे पढ़ा लिखाकर बड़ा किया। उसकी शादी हुई और बहू आयी। बहु जैसे ही रोटियां बनाने लगी तो लड़के ने डंडा लेकर दरवाजे पर खटखट करने लगा। बहु ने पूँछा ये क्या कर रहे हो और क्यों? तो लड़के ने बताया ये हमारे घर की परम्परा है, मेरी माता जब भी रोटी बनाती तो पापा ऐसे ही करते थे। कुछ दिन बाद उनके घर मे एक गुणीजन आये, तो माज़रा देख समझ गए। बोले बेटा तुम्हारे माता-पिता अंधे थे, अक्षम थे तो उन्होंने ने डंडे की खटखट के सहारे रोटियां बचाई। लेकिन तुम और तुम्हारी पत्नी दोनों की आंखे है, तुम्हे इस खटखट की जरूरत नहीं। *बेटे परम्पराओं के पालन में विवेक को महत्तव दो*।

आंटीजी, *इसी तरह हिंदू स्त्रियों में पर्दा प्रथा मुगल आततायियों के कारण आयी थी*, क्योंकि वो सुंदर स्त्रियों को उठा ले जाते थे। इसलिए स्त्रियों को मुंह ढककर रखने की आवश्यकता पड़ती थी। सर पर हमेशा पल्लू होता था यदि घोड़े के पदचाप की आवाज़ आये तो मुंह पर पल्ला तुरन्त खींच सकें।”

अब हम स्वतन्त्र देश के स्वतन्त्र नागरिक है, राजा का शासन और सामंतवाद खत्म हो गया है। अब स्त्रियों को सर पर अनावश्यक पल्ला और पर्दा प्रथा पालन की आवश्यकता नहीं है।

घर के बड़ो का सम्मान आंखों में होना चाहिए, बोलने में अदब होना चाहिए और व्यवहार में विनम्रता छोटो के अंदर होनी चाहिए।

सर पर पल्ला रखे और वृद्धावस्था में सास-ससुर को कष्ट दे तो क्या ऐसी बहु ठीक रहेगी?

आंटीजी पहले हम सब लकड़ियों से चूल्हे में खाना बनाते थे, लेकिन अब गैस में बनाते है। पहले बैलगाड़ी थी और अब लेटेस्ट डीज़ल/पेट्रोल गाड़िया है। टीवी/मोबाइल/लैपटॉप/AC इत्यादि नई टेक्नोलॉजी उपयोग जब बिना झिझक के कर रहे हैं, तो फिर बहुओं को पुराने जमाने के हिसाब से क्यों रखना चाहती है? नए परिधान यदि सभ्य है, सलवार कुर्ती, जीन्स कुर्ती तो उसमें किसी को समस्या नहीं होनी चाहिए। जब बेटियाँ उन्ही वस्त्रों में स्वीकार्य है तो फिर बहु के लिए समस्या क्यों?

आंटी जी, “परिवर्तन संसार का नियम है”। यदि आप अच्छे संस्कार घर में बनाये रखना चाहते हो तो उस सँस्कार के पीछे का लॉजिक प्यार से बहु- बेटी को समझाओ। उन्हें थोड़ी प्राइवेसी दो और खुले दिल से उनका पॉइंट ऑफ व्यू भी समझो।

बहु भी किसी की बेटी है, आपकी बेटी भी किसी की बहू है। अतः घर में सुख-शांति और आनन्दमय वातावरण के लिए *जिस तरह आपने मोबाइल जैसी टेक्नोलॉजी को स्वीकार किया है वैसे ही बहु के नए परिधान को स्वीकार लीजिये। बहु को एक मां की नज़र से बेटी रूप में देखिए, और उससे मित्रवत रहिये।*

*”सबसे बड़ा रोग- क्या कहेंगे लोग”*, इससे बचिए, क्योंकि जब आपको सेवा की जरूरत होगी तो लोग कभी उपलब्ध न होंगे। आपको *’बेटे-बहु’* ही चाहिए होंगे।

हर स्त्री को गलत नज़र से देखने वालों,
उपरवाला तुम्हें चाँद सी बेटी दे


Maa aur baap k charno se hokar khushi milti h,
patni aur bete me etna pyar me takat nhi ki us khushi ko rok sake.

जिदंगी में कभी किसी बुरे दिन से रूबरू हो जाओ
तो इतना हौंसला रखना की दिन बुरा था जिंदगी नहीं ।

आपके सारे गम खुशियों में तोल दूं
अपने सारे राज यू ही खोल दूं
कोई मुझसे पहले करे न आपको विश
सोचा आज ही हैप्पी न्यू ईयर बोल दूं