एक मेढक पहाड़ की चोटी पर चढ़ने का सोचता है और आगे बढ़ता है
बाकी के सारे मेंढक शोर मचाने लगते हैं “ये असंभव है.. आज तक कोई नहीं चढ़ा.. ये असंभव है.. नहीं चढ़ पाओगे”
मगर मेंढक आख़िर पहाड़ की चोटी पर पहुँच ही जाता है.. जानते हैं क्यूँ?
क्योंकि वो मेंढक “बहरा” होता है.. और सारे मेंढकों को चिल्लाते देख सोचता है कि सारे उसका उत्साह बढ़ा रहे हैं
इसलिए अगर आपको अपने लक्ष्य पर पहुंचना है तो नकारात्मक लोगों के प्रति “बहरे” हो जाइए |
———Thought for the Day !!!
*🌻व्यस्त रहें,मस्त रहें,स्वस्थ रहें



*5 छिद्रों वाले घड़े को कैसे भरेंगे ?*

*गुरु ने मुस्कान के साथ उत्तर दिया -पानी में ही डूबा रहने दो ;भरा ही रहेगा !*

*इसी तरह हमारी 5 इन्द्रियाँ परमात्मा में ही डूबी रहेंगी तो संसार क्या बिगाड़ लेगा*

*तन की जाने, मन की जाने,*
*जाने चित की चोरी ।*

*उस प्रभु से क्या छिपावे*
*जिसके हाथ है सब की डोरी ॥

बे वजह मन पे कोई बोझ ना भारी रखिए
जिँदगी जंग है इस
जंग को जारी रखिए

एक व्यक्ति मंदिर के बाहर रखी चप्पलों को चूम चूम कर रो रहा था,
और बोल रहा था प्रभु आप तो यहां हो, लोग आपको मन्दिर में याद कर रहे हैं।


अगर लोग केवल जरुरत पर ही आपको याद करते है
तो बुरा मत मानिये बल्कि गर्व कीजिये क्योंकि
“मोमबत्ती की याद तभी आती है,
जब अंधकार होता है।”

अंधे को मंदिर में देख कर लोग हँसकर बोले~

मंदिर में आये हो पर क्या भगवान को देख पाओगे?

अँधा~क्या फर्क पडता है मेरा भगवान तो मुझे देख लेगा।


kehte hain zindagi kaa aakhri thikaana khuda
kaa ghr hai,
kuch achaa kr le musaafir kisi k ghar khaali
haath nahi jaate.


समस्या – *”बेटा, मेरी बहुएं मेरा कहना नहीं सुनती। सलवार सूट और जीन्स पहन के घूमती हैं। सर पर पल्ला/चुनरी नहीं रखती और मार्किट चली जाती हैं। मार्गदर्शन करो कि कैसे इन्हें वश में करूँ…”*

*समाधान* – आंटी जी चरण स्पर्श, पहले एक कहानी सुनते हैं, फिर समस्या का समाधान सुनाते हैं।

“एक अंधे दम्पत्ति को बड़ी परेशानी होती, जब अंधी खाना बनाती तो कुत्ता आकर खा जाता। रोटियां कम पड़ जाती। तब अंधे को एक समझदार व्यक्ति ने आइडिया दिया कि तुम डंडा लेकर दरवाजे पर थोड़ी थोड़ी देर में फटकते रहना, जब तक अंधी रोटी बनाये। अब कुत्ता *तुम्हारे हाथ मे डंडा देखेगा और डंडे की खटखट सुनेगा तो स्वतः डर के भाग जाएगा रोटियां सुरक्षित रहेंगी*। युक्ति काम कर गयी, अंधे दम्पत्ति खुश हो गए।

कुछ वर्षों बाद दोनों के घर मे सुंदर पुत्र हुआ, जिसके आंखे थी और स्वस्थ था। उसे पढ़ा लिखाकर बड़ा किया। उसकी शादी हुई और बहू आयी। बहु जैसे ही रोटियां बनाने लगी तो लड़के ने डंडा लेकर दरवाजे पर खटखट करने लगा। बहु ने पूँछा ये क्या कर रहे हो और क्यों? तो लड़के ने बताया ये हमारे घर की परम्परा है, मेरी माता जब भी रोटी बनाती तो पापा ऐसे ही करते थे। कुछ दिन बाद उनके घर मे एक गुणीजन आये, तो माज़रा देख समझ गए। बोले बेटा तुम्हारे माता-पिता अंधे थे, अक्षम थे तो उन्होंने ने डंडे की खटखट के सहारे रोटियां बचाई। लेकिन तुम और तुम्हारी पत्नी दोनों की आंखे है, तुम्हे इस खटखट की जरूरत नहीं। *बेटे परम्पराओं के पालन में विवेक को महत्तव दो*।

आंटीजी, *इसी तरह हिंदू स्त्रियों में पर्दा प्रथा मुगल आततायियों के कारण आयी थी*, क्योंकि वो सुंदर स्त्रियों को उठा ले जाते थे। इसलिए स्त्रियों को मुंह ढककर रखने की आवश्यकता पड़ती थी। सर पर हमेशा पल्लू होता था यदि घोड़े के पदचाप की आवाज़ आये तो मुंह पर पल्ला तुरन्त खींच सकें।”

अब हम स्वतन्त्र देश के स्वतन्त्र नागरिक है, राजा का शासन और सामंतवाद खत्म हो गया है। अब स्त्रियों को सर पर अनावश्यक पल्ला और पर्दा प्रथा पालन की आवश्यकता नहीं है।

घर के बड़ो का सम्मान आंखों में होना चाहिए, बोलने में अदब होना चाहिए और व्यवहार में विनम्रता छोटो के अंदर होनी चाहिए।

सर पर पल्ला रखे और वृद्धावस्था में सास-ससुर को कष्ट दे तो क्या ऐसी बहु ठीक रहेगी?

आंटीजी पहले हम सब लकड़ियों से चूल्हे में खाना बनाते थे, लेकिन अब गैस में बनाते है। पहले बैलगाड़ी थी और अब लेटेस्ट डीज़ल/पेट्रोल गाड़िया है। टीवी/मोबाइल/लैपटॉप/AC इत्यादि नई टेक्नोलॉजी उपयोग जब बिना झिझक के कर रहे हैं, तो फिर बहुओं को पुराने जमाने के हिसाब से क्यों रखना चाहती है? नए परिधान यदि सभ्य है, सलवार कुर्ती, जीन्स कुर्ती तो उसमें किसी को समस्या नहीं होनी चाहिए। जब बेटियाँ उन्ही वस्त्रों में स्वीकार्य है तो फिर बहु के लिए समस्या क्यों?

आंटी जी, “परिवर्तन संसार का नियम है”। यदि आप अच्छे संस्कार घर में बनाये रखना चाहते हो तो उस सँस्कार के पीछे का लॉजिक प्यार से बहु- बेटी को समझाओ। उन्हें थोड़ी प्राइवेसी दो और खुले दिल से उनका पॉइंट ऑफ व्यू भी समझो।

बहु भी किसी की बेटी है, आपकी बेटी भी किसी की बहू है। अतः घर में सुख-शांति और आनन्दमय वातावरण के लिए *जिस तरह आपने मोबाइल जैसी टेक्नोलॉजी को स्वीकार किया है वैसे ही बहु के नए परिधान को स्वीकार लीजिये। बहु को एक मां की नज़र से बेटी रूप में देखिए, और उससे मित्रवत रहिये।*

*”सबसे बड़ा रोग- क्या कहेंगे लोग”*, इससे बचिए, क्योंकि जब आपको सेवा की जरूरत होगी तो लोग कभी उपलब्ध न होंगे। आपको *’बेटे-बहु’* ही चाहिए होंगे।

अदॅर से तो कब के मर चुके है…

ऎ मोत तू भी आजा…
ये लौग सबूत मागॅते है ।

अब उस मलेशिया को भी हाइड्राक्सीक्लोरोक्वीन चाहिए,

जो 6 माह पहले कश्मीर पाकिस्तान को दे रहा था।


*जिदंगी मे अच्छे लोगो की*
*तलाश मत करो*
*खुद अच्छे बन जाओ*
*आपसे मिलकर शायद*
*किसी की तालाश पूरी हो।*


अगर आप कहीं रास्ते में हैं….😃और अचानक से कोई सनसनाता हुआ पानी या रंग की धार आप पर आकर गिरती है…..😂
तो गुस्सा न हों, न उन बच्चों को डांटे…😀
उनको कोसने के बजाए खुद को भाग्यशाली समझें…😎😎कि आपको उन नादान हाथों ने चुना है जो हमारी परम्परा को, संस्कृति को जिन्दा रखे हुए हैं…😄जो उत्सवधर्मी हिन्दोस्तान को और हिंदुस्तान में उत्सव को जिन्दा रखे हुए हैं… 😊ऐसे कम ही नासमझ मिलेंगे..😋वैसे भी बाकि सारे समझदार विडियोगेम, डोरेमोन, और एंड्रॉइड के अंदर घुसे होंगे.. 😏
तो कृपया इन्हें हतोत्साहित न करें…😒बल्कि यदि आप उन्हें छुपा देख लें तो जानबूझ कर वही से निकलें..🤓आपकी 400 Rs की शर्ट जरूर खराब हो सकती 😝पर जब उनकी इस शरारत का जबाब आप मुस्कुराहट से देंगे न..😛 तो उनकी ख़ुशी आपको 4000 की ख़ुशी रिटर्न करेगी…और होली जिन्दा रहेगी,😄 रंग जिन्दा रहेंगे😃हिंदुस्तान में उत्सव जिन्दा रहेगा और हिंदुस्तान जिन्दा रहेगा।।😎😎

‘वक्त ‘ बदलने के लिए ‘बुज़दिलों’ की फौज की दरकार नहीं ,
चंद ‘हौसले’ वालों की ‘अंगड़ाई ‘ ही काफी ह


Dusman ko hajar chance do ki aap ka dost ban jay ,
lekin apne dost ko ek chance bhi mat dena
ki wo aap ka dusman ban jay

जो दूसरों को इज़्ज़त देता है,
वो खुद इज़्ज़तदार होता है
क्योकि इंसान दूसरो को वही दे पाता है
जो उसके पास होता है

जीवन मिलना यह भाग्य पर निर्भर है,
किंतु मृत्यु के बाद भी लोगों के दिलों में ज़िंदा रहना
यह अपने कर्मों पर निर्भर है