क्या बयां करूँ कि लब अब खामोश रहते हैं,
जुदा होकर उनसे हम अधूरे से लगते हैं
हवा के झोंके से पुछता हूं हाल उनका
शायद वो उनके शहर से गुजरा हो
अब खा ले कुछ तू भी बहुत भूखी होगी,,,,
देख चाँद आया है फलक पर मोहब्बत बनकर ।।।
शक तो था मोहब्बत में नुक्सान होगा,
पर सारा हमारा होगा ये मालूम न था।
दोपहर तक बिक गया बाजार का हर एक झूठ ,
और मैं एक सच लेकर शाम तक बैठा
बेकल बेकल रहते हो पर महफ़िल के आदाब के साथ
आँख चुरा कर देख भी लेते भोले भी बन जाते हो
बन्दा खुद की नज़र में सही होना चाहिए…
दुनिया तो साली भगवान से भी दुखी है |
आज तक कायम है उसके लौट आने की उम्मीद
आज तक ठहरी है जिंदगी अपनी जगह
ज़िन्दगी में अपनापन तो हर कोई दिखाता है,
पर अपना है कौन ये वक़्त बतलाता है।
सारी उम्र जिस घर को सजाने में गुजार दी ,
उस घर में मेरे नाम की तख्ती तलक नहीं !
हम गुम थे एक खयाल में इस कदर
खुद को ढूंढने का वक्त ही नहीं मिला
हम सा काहिल न मिलेगा कहीं
खुद ख्वाहिशें हमसे तंग सजन
जाने कब आँख लगी, यादों के दीये जलते रहे,
रोशनी घुलती रही, ख्वाबों में तेरी महक आई है !
मैं मानता हूँ खुद की गलतियां भी कम नहीं रही होंगी मगर बेकसूर उन्हें भी कहना मुनासिब नहीं
इतना टूटा हूँ के छूने से बिखर जाऊँगा,
अब अगर और दुआ दोगे तो मर जाऊँगा
तुम चलो तो ये ज़मीं साथ दे ये आसमान साथ दे
हम चले तो साया भी साथ ना दे