तकदीर मेँ ढूंढ रहा था तस्वीर अपनी,
न
ही मिली तस्वीर, ओकात मिल गई अपनी
तकदीर मेँ ढूंढ रहा था तस्वीर अपनी,
न
ही मिली तस्वीर, ओकात मिल गई अपनी
खुद को बिखरने मत देना कभी किसी हाल मे,
लोग गिरे हुए मकान की ईटेँ तक ले जाते है
क्या करामात है कुदरत का
जिन्दा इँसान पानी मे डुब जाता है
और मुर्दा तैर के दिखाता है
मौत को देखा तो नही पर शायद वो बहुत खूबसूरत होगी,
कम्बख्त जो भी उस्से मिलता है जीना छोड देता है
मुझे नफरत पंसद है मगर,
दिखावे का प्यार नही!!
हद से बढ़ जाये ताल्लुक तो ग़म मिलते हैं,
हम इसी वास्ते, अब हर शख्स से कम मिलते हैं
बेवफाई तो सभी कर लेते है जानेमन ,
तू तो समझदार थी कुछ तो नया करती
वो भी आधी रात को निकलता है और मैं भी,
फिर क्यों उसे “चाँद” और मुझे “आवारा” कहते हैं
मौत भी अजीब चीज़ है मरने के लिये
साली पूरी ज़िन्दगी जीनी पड़ती हे….
दोस्तो से अच्छे तो मेरे दुश्मन निकले,,
कमबख्त हर बात पर कहते हैं कि तुझे छोडेंगे नहीं.
बिना मतलब के दिलासे भी नहीं मिलते यहाँ ,
लोग दिल में भी दिमाग लिए फिरते हैं !!
लश्कर भी तुम्हारा है, सरदार भी तुम्हारा है,
तुम झूठ को सच लिख दो, अखबार भी तुम्हारा है..!!
बहुत शौक से उतरे थे इश्क के समुन्दर में..!!
एक ही लहर ने ऐसा डुबोया कि आजतक किनारा ना मिला.!!
‘बड़ी बारीकी से तोडा है, उसने दिल का हर कोना,
मुझे तो सच कहुँ, उस के हुनर पे नाज़ होता है…!
तेरी बेरुखी ने छीन ली है शरारतें मेरी,
और लोग समझते हैं कि मैं सुधर गया हूँ..!
बहुत जुदा है औरो से मेरे दर्द की कहानी.
जख्म का कोई निशाँ नहीँ और दर्द की कोई इँतहा नही.