तकदीर मेँ ढूंढ रहा था तस्वीर अपनी,
न
ही मिली तस्वीर, ओकात मिल गई अपनी
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तकदीर मेँ ढूंढ रहा था तस्वीर अपनी,
न
ही मिली तस्वीर, ओकात मिल गई अपनी
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बेक़रारी देख ली तूने, अब तू मेरी खामोशी देख
इतना ख़ामोश रहूँगा मैं,की अब चीख़ उठेगी तू….
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पप्पू को बीड़ी पीने की लत लग गई..!!
उसके बाप ने उसे बाबा रामदेव की क्लास में भेज दिया ..!!!..
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अब पप्पू पाँव से भी बीड़ी पी लेता है !😜😜
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ऐटिट्यूड की हाइट तो देखें…
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एक आदमी कॉकरोच को मार रहा था।
मरने से पहले कॉकरोच ने आदमी से आखिरी बार बोला…
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‘मार दे मुझे..!
डरपोक कहीं के.!
तू मुझसे इसलिए चिढ़ता है…
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क्योंकि तेरी बीवी मुझसे डरती है
और तुझसे नहीं
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समस्या – *”बेटा, मेरी बहुएं मेरा कहना नहीं सुनती। सलवार सूट और जीन्स पहन के घूमती हैं। सर पर पल्ला/चुनरी नहीं रखती और मार्किट चली जाती हैं। मार्गदर्शन करो कि कैसे इन्हें वश में करूँ…”*
*समाधान* – आंटी जी चरण स्पर्श, पहले एक कहानी सुनते हैं, फिर समस्या का समाधान सुनाते हैं।
“एक अंधे दम्पत्ति को बड़ी परेशानी होती, जब अंधी खाना बनाती तो कुत्ता आकर खा जाता। रोटियां कम पड़ जाती। तब अंधे को एक समझदार व्यक्ति ने आइडिया दिया कि तुम डंडा लेकर दरवाजे पर थोड़ी थोड़ी देर में फटकते रहना, जब तक अंधी रोटी बनाये। अब कुत्ता *तुम्हारे हाथ मे डंडा देखेगा और डंडे की खटखट सुनेगा तो स्वतः डर के भाग जाएगा रोटियां सुरक्षित रहेंगी*। युक्ति काम कर गयी, अंधे दम्पत्ति खुश हो गए।
कुछ वर्षों बाद दोनों के घर मे सुंदर पुत्र हुआ, जिसके आंखे थी और स्वस्थ था। उसे पढ़ा लिखाकर बड़ा किया। उसकी शादी हुई और बहू आयी। बहु जैसे ही रोटियां बनाने लगी तो लड़के ने डंडा लेकर दरवाजे पर खटखट करने लगा। बहु ने पूँछा ये क्या कर रहे हो और क्यों? तो लड़के ने बताया ये हमारे घर की परम्परा है, मेरी माता जब भी रोटी बनाती तो पापा ऐसे ही करते थे। कुछ दिन बाद उनके घर मे एक गुणीजन आये, तो माज़रा देख समझ गए। बोले बेटा तुम्हारे माता-पिता अंधे थे, अक्षम थे तो उन्होंने ने डंडे की खटखट के सहारे रोटियां बचाई। लेकिन तुम और तुम्हारी पत्नी दोनों की आंखे है, तुम्हे इस खटखट की जरूरत नहीं। *बेटे परम्पराओं के पालन में विवेक को महत्तव दो*।
आंटीजी, *इसी तरह हिंदू स्त्रियों में पर्दा प्रथा मुगल आततायियों के कारण आयी थी*, क्योंकि वो सुंदर स्त्रियों को उठा ले जाते थे। इसलिए स्त्रियों को मुंह ढककर रखने की आवश्यकता पड़ती थी। सर पर हमेशा पल्लू होता था यदि घोड़े के पदचाप की आवाज़ आये तो मुंह पर पल्ला तुरन्त खींच सकें।”
अब हम स्वतन्त्र देश के स्वतन्त्र नागरिक है, राजा का शासन और सामंतवाद खत्म हो गया है। अब स्त्रियों को सर पर अनावश्यक पल्ला और पर्दा प्रथा पालन की आवश्यकता नहीं है।
घर के बड़ो का सम्मान आंखों में होना चाहिए, बोलने में अदब होना चाहिए और व्यवहार में विनम्रता छोटो के अंदर होनी चाहिए।
सर पर पल्ला रखे और वृद्धावस्था में सास-ससुर को कष्ट दे तो क्या ऐसी बहु ठीक रहेगी?
आंटीजी पहले हम सब लकड़ियों से चूल्हे में खाना बनाते थे, लेकिन अब गैस में बनाते है। पहले बैलगाड़ी थी और अब लेटेस्ट डीज़ल/पेट्रोल गाड़िया है। टीवी/मोबाइल/लैपटॉप/AC इत्यादि नई टेक्नोलॉजी उपयोग जब बिना झिझक के कर रहे हैं, तो फिर बहुओं को पुराने जमाने के हिसाब से क्यों रखना चाहती है? नए परिधान यदि सभ्य है, सलवार कुर्ती, जीन्स कुर्ती तो उसमें किसी को समस्या नहीं होनी चाहिए। जब बेटियाँ उन्ही वस्त्रों में स्वीकार्य है तो फिर बहु के लिए समस्या क्यों?
आंटी जी, “परिवर्तन संसार का नियम है”। यदि आप अच्छे संस्कार घर में बनाये रखना चाहते हो तो उस सँस्कार के पीछे का लॉजिक प्यार से बहु- बेटी को समझाओ। उन्हें थोड़ी प्राइवेसी दो और खुले दिल से उनका पॉइंट ऑफ व्यू भी समझो।
बहु भी किसी की बेटी है, आपकी बेटी भी किसी की बहू है। अतः घर में सुख-शांति और आनन्दमय वातावरण के लिए *जिस तरह आपने मोबाइल जैसी टेक्नोलॉजी को स्वीकार किया है वैसे ही बहु के नए परिधान को स्वीकार लीजिये। बहु को एक मां की नज़र से बेटी रूप में देखिए, और उससे मित्रवत रहिये।*
*”सबसे बड़ा रोग- क्या कहेंगे लोग”*, इससे बचिए, क्योंकि जब आपको सेवा की जरूरत होगी तो लोग कभी उपलब्ध न होंगे। आपको *’बेटे-बहु’* ही चाहिए होंगे।
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“संता U.S.A घूमने गया।
वहाँ एक बिल्डिंग में आग लग गयी थी।
संता फायर ब्रिगेड से –
तुम लोगो को नीचे फेंको में केच करूँगा ।
पहले 1 लड़का आया, फिर लड़की, फिर आदमी, फिर औरत,
फिर
एक अफ्रिकी(ब्लेक आदमी) आया तो संता ने छोड़ दिया,
और बोला
अबे सालो जो जल गये है उनको तो मत फेंको
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पापाः बेटा तुम्हारे रिजल्ट का क्या हुआ?
पप्पुः पापा 80% आये है ।
पापाः पर मार्कशीट पर 40% लिखा है?
पप्पूः बाकी के 40% आधारकार्ड लिंक होनेपर सीधे अकाऊंट में आएंगे।
पापा बेहोश..
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हर छोरी की माँ का सपना होता है कि उनकी छोरी के लिए कोई अच्छा लङका मिले….✋🏻😎
पर मैं भला अकेला किस-किस की माँ का सपना पूरा करूँगा
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हमसे पहले भी कोई था,
हमारे बाद भी कोई होगा
ना रहेंगे हम भी तो,
किसी को कोई गम ना होगा…!
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कोई जब राह न पाए, मेरे संग आए
के पग-पग दीप जलाए
मेरी दोस्ती मेरा प्यार
जीवन का यही है दस्तूर
प्यार बिना अकेला मजबूर
दोस्ती को माने तो सब दुख दूर
कोई काहे ठोकर खाए
मेरे संग आए…
दोनो के हैं, रूप हज़ार
पर मेरी सुने जो संसार
दोस्ती है भाई, तो बहना है प्यार
कोई मत चैन चुराए
मेरे संग आए…
प्यार का है, प्यार ही नाम
कहीं मीरा, कहीं घनश्याम
दोस्ती का यारो नहीं कोई दाम
कोइ कहीं दूर ना जाए
मेरे संग आए…
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👌लाख टके की बात👌
” जीवन में तीन लोगों को कभी नहीं भूलना चाहिये…,
मुसीबत में साथ देने वाले को…,
मुसीबत में साथ छोड़ने वाले को…,
और…,
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मुसीबत में डालने वाले को…।
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किसी ने युंही पुछ लिया हमसे
की दर्द की कीमत क्या है,
हमने हंसते हुए कहा,
पता नहीं….
कुछ अपने मुफ्त में दे जाते है
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कुछ लड़कियां इतना भर भर के काजल लगा कर आफिस जाती है
उतने काजल में आप दो बार अपने जूते पोलिश कर सकते है!!.!!
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एक डॉक्टर शायरी के मूड में था,
अब देखिये उसने दवाईयां कैसे लिखी
कैसे समझाया अपने मरीज को…😂
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दिल बहला के मोहब्बत को न धमाल करें,
सीरप को अच्छी तरह हिला के इस्तेमाल करें..😜
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दिल मेरा टुट गया उठी जब उसकी डोली,
सुबह, दोपहर, शाम बस एक – एक गोली…😝
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लौट आओ कि मोहब्बत का सुरूर चखे,
तमाम दवाईयां बच्चों की पहुंच से दूर रखें…😁
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दिल मेरा इश्क करने पर रजामंद रहेगा,
इतवार के दिन अस्पताल बंद रहेगा…!
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रीति रिवाज के अनुसार पुत्र या सगे-संबंधी ही चिता को आग लगाते हैं।
हमारे यहाँ रावण को आग लगाने का दायित्व “नेताजी और अफसरों” के पास है।
आखिर संस्कृति भी कोई चीज है।
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मैंने ज़िन्दगी में जितना भी सफर
किया है
उससे मुझे एक बात का अनुभव हुआ है
*
*
कि ट्रेन कभी पंचर नहीं होती
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