मुस्कला एक शायरी याद करी थी छोरी फ़सान ताई। अक “एक पल में जान, जिस्म से कैसे जुदा होती है” या बात मन्ने कही तो अपणि सोड म थी। पर मेरे बाब्बू न बेरा ना क्यूकर सुणगी
फेर बाब्बू न बताई कोहणि मार मार के अक एक पल म जान जिस्म से कैसे जुदा होती है। इतने भूंडे भी कोई मारया करे। …!!
Sub Categories
म्हारे गाम का सुक्की वेहला ब्याह खात्तर छोरी देखण मन्नै अपने गैल्यां ले ग्या …
छोरी के सारे घर के बैठे थे , छोरी चाय लेकै आई अर सामने बैठगी … सुक्की थोड़ी हाण छोरी कान्नी देखकै छोरी के बाब्बू तै बोल्या :- अंकल जी है तो या बी ठीक पर इस्तै बढ़िया कोई और हो तो वा बी दिखा द्यो ……..
या सुन्दे ई मैं तो औढ़े तै अंतरध्यान हो ग्या …
सुक्की गैल्यां के बणी पाच्छे तै या तो वो होस मैं आण के बाद बतावैगा … आई सी यू मैं बेहोस पड़या फिलहाल तो
मन्नै आशकी मैं बारां लाइन की शायरी पेली थी ,
तन्नै hmmm जवाब देकै जणो गोब्बर कर दिया .
चाँद बहुत दूर है , तड़पाता है , जमाना कहता है ,
मुझे देखो मेरा दिल कितने सितम सहता है …।
डूबा रहता हूँ उसकी रोशनी में हर लम्हा ,
हुस्न का इक दरिया रोज मेरी आँखों के आगे बहता है …।
बनाने वाले को भी नाज़ होगा “शर्मा” अपनी कारीगरी पे ,
अरे … मेरे सामने वाली खिड़की में इक चाँद का टुकड़ा रहता है
इक याद पुरानी आई फिर …
माँ कहती थी रोटी खाले
वरना कउआ ले भागेगा
थोड़ी सी चिड़िया को देना
चीं चीं सुन सुबह जागेगा
इक रोटी आज बची थाली की
छत पे सुबह फैंकी थी
अब रात को आके देखा तो
वैसी की वैसी रखी थी
कहां गया वो काला कउआ
कहां गई वो चिड़िया रानी
मिल के दोनों खिचड़ी बनांए
मैं जब सुनता था ये कहानी
तब वो मुझको दिखते थे
आता था मजा कहानी का
ये बात है बिल्कुल सच्ची
कहना होता था नानी का
अब कैसे अपने बच्चों को
वो फिर से कहानी सुनाऊं मैं
उनको दिखलाने आज कहां से
चिड़िया कउआ लांऊ मैं
फिर सुबह कान लगाए थे
चिड़िया की चीं चीं सुनने को
फिर कउआ कहीं से आएगा
मेरी रोटी ले जाएगा
ना चिड़िया है ना कउआ है
जाने वो कहां गए हैं फिर
फिर चिड़िया कउआ याद आए
इक याद पुरानी आई फिर …।।।
Parveen Sharma
छोटे छोटे चैक की लाल बुरशट , डार्क गरे पन्ट , पीटर इंग्लैंड की जर्सी , रेड चीफ के काले जूत्ते , क्लीन शेव , सुथरे पठे बाह क आज घर त लिकड़ा था डयूटी प। पर कोइसी भाईरोई न, ना त देख्या अर ना भाव दिए
फेर मन्ने सोच्या के कमी रह गी र
भीतर त आवाज आई दिल्ली म आ रया स खागड आड़े सकल भी भुंडी होणि चईये
थाने का मुन्शी :- भाई एक बात बता , लुगाई तेरे पड़ोसी की खो गई अर रिपोट लिखाण तूं आया , कोए चक्कर है के तेरा उसकी लुगाई के सांथ,
भाई :- कोए चक्कर ना जनाब ! पर मेरे पै साले की खुशी ना देखी जारी , तीन दिन होगे- रोज पार्टी पे पार्टी कर रया है सुसरा.
काल मैं बस में सफर करु था..
मेरे साइड आली सीट प एक छोरा अर छोरी बैठे थे।
दोनों एक दूसरे ताइं अजनबी थे।
थोड़े टेम बाद वे आपस में बात करण लाग्गे।
बातचीत उस मुकाम तक पहुँचगी जीत मोबाइल नंबर का आदान प्रदान होया करे
छोरे का फोन बेरा ना क्यूं ऑफ था।
फेर छोरे ने अपनी जेब म त एक कागज लिकाड़ा, लेकिन लिखने के लिए उसपे पेन कोनी था।
अर मैं जब्बे समझ गया कि, उसने मोबाइल नंबर लिखण ताई पेन की जरूत स।
उसने बड़ी आशा से मेरी कहन देख्या।
मैंने अपनी शर्ट के ऊपरी जेब में टांग्या होड पेन लिकाडा
अर चालती बस त बाहर फेंक दिया।
.
.
“…ना खाऊँगा, ना खाण दूँगा..।।”
कड़ै गऐ बचपन के मित्र,
पाटी कच्छी टुटे लित्र ।
भैसैया गेल्यां गऐ जोहड पै,
काढ़ी कच्छी बडगे भित्तर ।
माचिस के ताश बणाया करदे,
नहर पै खेलण जाया करदे ।
घर तै लुकमा बेच कै दाणे,
खा गे खुरमे खिल मखाणे ।
मिश्री तै मिठे होया करदे,
खिल्लां तै फ़िक्के होगे….
वे यार पुराणे रै…
बेरा ना कित्त खोगे।
पकड लिये फेर स्कूल के रस्ते,
हाथ मै तख्ती काँख मैं बस्ते ।
गरमी गई फेर आ गया पाला,
एक दिन नहा लिऐ एक दिन टाला ।
पैंट ओर बुरसट मिलगी ताजी,
एक दो दिन गए राजी राजी ।
हाथ जोड फेर रोवण लागे,
आज आज घर पै रहण दैयो मां जी ।
आखयां मै आंसु आए ना…
हाम्म थुक लगा कै रोगे ।
वे यार पुराणे रै…
बेरा ना कित्त खोगे ।
कॉलेज मै फेर होग्या एडमिशन,
बाहर जाण की थी परमिशन ।
रोडवेज मै जाया करदे,
नकली पास कटाया करदे ।
बीस रुप्पली करकै कट्ठी,
ले लिया करदे चा और मट्ठी ।
स्पलैंडर पै मारे गेडे,
सैट करली थी दो दो पट्ठी ।
मास्टर पाठ पठाया करदा,
आंख मिच कै सोगे ।
वे यार पुराणे रै…
बेरा ना कित्त खौगे ।
वक्त गेल गऐ बदल नजारे,
बिखर गऐ सब न्यारे न्यारे ।
घरां पडया;कोए करै नौकरी,
घरक्यां नै करी पसंद छोकरी ।
शादी करली बणगे पापा,
कापी छोडी लिया लफाफा ।
रोऐ जा सै दिल मरज्याणा,
भुल गऐ क्यु टैम पुराणा ।
“saare balak” याद करै..
क्यु बीज बिघन के बो गे रै ।
वे यार पुराणे रै,
बेरा ना कित्त खोगे….
किसै नै चाहिए हो तो बता दियो, कदै बाद म्ह उल्हाणा दयो 😂
1 साल चाल्या 2017 का कैलेंडर, 70 का लिया था 30 म्ह दे दूगा
इब या किसनै फैलाई…
कोहली ब्याह मै बाज्या आल्या के रपिये मार गया
भीरे की तूड़े आली बुग्गी पल्टगी … गुमसुम परेशान बुग्गी के चारो कान्नि चकरी काटै था …
जब्बे उसका डब्बी शामा बी मोटरसैकल पै शहर तै आवै था … बोल्या रै भीरे याके बणी …
भीरा बोल्या पूच्छै ना भाई … आज बाब्बू मारैगा …
बोल्या हट मेरे यार या तो होंदी जांदी रैं पल्टगी सुसरी पल्टगी बंदे ल्याकै सीधी करवा ल्यांगे … अर तुड़ा बी ढो द्यांगे टैंशन मतना करै …
भीरा बोल्या भाई कुच्छे करले बाब्बू तो मन्नै मारैगा …
बोल्या यार तूं तो घणा ए डर ग्या … लै शहर तै बोतल ल्याया था ढक्कण खोल कै मार दो घूंट मूं लाकै … सब ठीक हो जागा …
भीरा फेर … ना भाई बाब्बू मारैगा …
शामे नै हांगे तै उस्तै थोड़ी प्या दी ..
भीर उल्टे हाथ तै मूं साफ करदा बोल्या … भाई मानजा बाब्बू मारैगा …
शामा छौह मैं आ ग्या … हद ऐ यार चाल मैं बात करूं तेरे बाब्बू गैल्यां … है कित ताऊ …
भीरा पल्टी होड़ बुग्गी कन्नी देखकै बोल्या … तूड़े के निच्चै दब रया है …
भाई तीन तलाक पै तीन साल की कैद …
घणी बढ़िया बात सै …
पर जो बिना तलाक दिए छोड़ ज्यां हैं
किसी बहाने तै उनका के …
देस की कई बहन बेटीयां गैल्यां बणरी है …।।।
एक बुढे कै चार-पाँच छोरे,
बुढा मरणासन हो रया, आर वे पाँचु मेरे बटे
सकिम भिडाण लाग रे,
एक बोल्या ‘ रै बाबु मरेगा’
दुसरा बोल्या ‘हाँ भाई मरणन तै होए
रहया स’
तीसरा बोल्या ‘भाई गाँम कि च्याणी त
दुर पडेँगी इतणी दुर नही चालेगा, न्यु
कर ल्यागे ट्रेक्टर म ले चालागे।’
पहलडा बोल्या ‘आछ्या 100 रपये
लेगा ट्रेकटर आला’
दुसरा बोल्या ‘रे बुगी म ले चालागे’
एक बोल्या ‘तेरा झकोई 70
लेगा बुगी आला भी’
चौथा बोल्या ‘रे न्यु कर लियो साईकल क
गेल न सिढी बांध क उसप लुटा लियो’
इब बुढा खाट म पडया पडया सुणन
लाग रया था, उसन देख लिया तेरी खराब
माटी करैगे, कोए कोए साँस आवै था, उसने
जोड के साँस आर मार कै हँगा, होकै
बैठया बोल्या ‘रे मैरी जुती दे दयो, मैँ पैदल
ए डिगर ज्यांगा’
नब्बे दिन छुटके नब्बे दिन नवम्बर दिसम्बर जनवरी … नहाना मतलब मौत को दावत देना …
फरवरी … एक महीना ऐसे ही इंतजार करो क्योंकि अचानक पानी उपर डालोगे तो गरम सरद हो सकता है ….
सिर्फ होली से बचो तो मार्च भी निकल जाएगा … सुसरे गीले पानी से बच के …
अप्रेल में थोड़ा सैंट छिड़क लो … लोगों का ऐसे ही ऐप्रेल फूल बना रहेगा … बइ बंदा खुश्बुएं फेंक रहा तो नहाया होगा … मई थोड़ा उपर नीचे करके निकाल दो …
जून जुलाई अगस्त … पसीना ही इतना आता है कि बंदा वैसे ही नहाया रहता है … सितम्बर मौसम बदलता है डाक्टर भी बोलते हैं नहाना मत …
बचा एक अक्तुबर तो यार एक महिना अपने दम से निकालो … यां सब मैं ही सिखाऊं …
नब्बे दिन छुटके बस्स्स् नब्बे दिन ….
आग्गै मरजी है तेरी आखिर गात है तेरा …
सौड़ पैरां तै थोड़ी बी उपर होजा तो पूरे गात नै जाड्डा चढ़जै अर नींद खराब हो जै है …
वा क्युकर सोंदे होंगे जिनकी चाद्दर बी पाटरी हो ,
भाई आस पड़ोस मैं कोई गरीब हो तो जाड्डे मैं मदद कर दियो …
राम तो देखेगा इ … उस गरीब नैं बी नींद आजागी दो घढ़ी