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क्या पता था, दोस्त ऐसे भी दगा दे जाएगा ,
अपने दुश्मन को मेरे घर का पता दे जाएगा…..



जुबां कह न पाई मगर आँखे बोलती ही रही.
कि मुझे सांसो से पहले तेरी जरूरत है.

जिन्दा रहो जब तक, लोग कमियां ही निकालते हैं,

मरने के बाद जाने कहाँ से इतनी अच्छाइयां ढूंढ लाते हैं ।

-Unse Kehdo Hamarii Sazza Kuch Kam Kardey,
Hum Mujrim Nahii Bas Galti Se Ishq Hua Haii .. ‘


Kabhi Us Insaan ko Nazar Andaz Na Karo
Jo Tumhari Bahut Parwah Karta Ho
Warna Kisi Din Tumhe Ehsas Hoga Ke,
Patthar Jamaa Karte-Karte Tumne HEERA Gawa Diya.

सब आ गए ना 2017 में?😝😝😝😂😂😂
कोई छूटा तो नहीं


Saanu pathar te khud nu phul aakh k muskuraunde ne!!
Onna nu shyad eh ni pta ki pathar ta pathAr hi rhna
akhir ch full hi raang vataunde ne!


Main bahut Zalim Hun Aye Mere Dil..
.
.
Tujhe Hamesha Us Ke Hawale Kiya Jise TeRi Qadar Hi Nahi..

संता का बेटा स्कूल जाते हुए रो रहा था.

संता – “शेर के बच्चे रोते नहीं हैं
.”बेटा – “शेर के बच्चे स्कूल भी नहीं जाते … !”

घोती कहे पैजामे से
तुम खुलते हो आगे से ।
और मै खुलती हू पीछे से ।।


एडमिन बैंक मे जाकर
मैनेजर से बोला , जाइन्ट खाता खुलवाना है ।

मैनेजर : – किसके साथ ?

जिसके भी खाते मे ज्यादा बैलेंस हो ..!!
🤣🤣😛😛😂😂


तुम्हे पहली बार मैंने तब नोटिस किया था,
जब किसी शाम तुम एक सब्ज़ी वाले से झगड़ा कर रही थी।
उसे डांटते वक़्त तुम्हारी आवाज़ इतनी तेज़ थी
कि मुझे मेरे कमरे तक सब सुनाई दे रहा था।
जब मैं बालकनी में आया तो तुम्हारा गुस्से से लाल चेहरा
देख हाथ बाँध कर आनंद लेने लगा।
दाँत पीस कर जिस
तरह तुम उस सब्जी वाले से उलझी थी,
मैं तो वही देख कर बिछ गया था।
तुम्हारे घर से अक्सर पुराने गीत की मधुर ध्वनियाँ मेरे
कमरे तक सुनाई देती है।
“माँग के साथ तुम्हारा मैंने..,
ढल गया दिन..,
मेरे साजन..”
मतलब गज़ब प्लेलिस्ट है तुम्हारी,
हू-ब-हू मेरी प्लेलिस्ट की तरह। बस मैं किशोर को थोड़ा ज़्यादा prefer करता हूँ।
थोड़ा स्पष्ट सुनने के लिए अब मैं बालकनी में आ गया
था।
तुम चाय का कप लिए नीचे खेल रहे बच्चों को देख रही थी।
शायद तुम इस बात से बेफिकर थी कि मैं
बगल खड़ा तुम्हें देख रहा था।
या यूँ कहूँ कि घूर रहा था।
तुम एकदम से मेरी ओर मुड़ी
और मैंने भी कितनी
स्फूर्ति से अपनी आँखों को तुमसे हटाकर दूसरी तरफ
देखने का नाटक किया।
शायद ये सही मौका नहीं था बात करने का।
या शायद इससे अच्छा मौका न मिलता।
एक आदर्श मोहल्लावासी होने के नाते मैंने अपनी
मौजूदगी दर्ज करानी चाही ही थी कि तुम्हारी माता जी ने तुम्हे आवाज़ लगा दी।
और तुम अंदर चली गयी।
इसके बाद कभी कोई ठीक ठाक मौका
ही नहीं मिला तुमसे मुखातिब होने का।
फिर एक दिन मैं छत पर लैपटॉप लिए बैठे जाने क्या
कर रहा था,
कि तुम भी एक हाथ में बाल्टी, दुसरे में चिमटियां थामे छत पर आ गयी।
और एक-एक करके
कपड़े फैलाने लगीं तारों पर।
जितनी बार तुम कपड़े
तारों पर डालने से पहले उन्हें झटकती,
उतनी बार तुम्हारी चूड़ियाँ झनझना उठती थी।
उसका शोर पूरी छत पर गूँजता रहा था।
एकदम हाय-हुक-हाय-
हाय वाले गाने की फीलिंग आ रही थी।
तभी मेरी फोन की घंटी बजी
और तुमने देखा की मैं भी वहाँ
चोरों की तरह बैठकर,काम करने की एक्टिंग कर रहा हूँ।
तुम सकपका गयीं।
लेकिन मैंने माहौल पे पकड़
बनाये रखने के लिए तुरंत बोल दिया..
“आज धूप बहुत तेज़ है न!”
“हाँ, सो तो है।
लेकिन क्या किया जाए,
कपड़े तो धुलने ही पड़ेंगे।”
“ये बात तो है,
कोई मदद करूँ आपकी?”
“कपड़े धोने में? ”
“अरे मतलब कपड़े सुखाने में ”
“अरे नहीं मैं कर लूँगी”
“वैसे आपको किसी भी तरह की ज़रूरत हो तो बता
सकती हैं आप, बेझिझक।”
“जी बिलकुल ”
हालाँकि ये एक बहुत औपचारिक वार्ता थी,
लेकिन इस वार्ता के बाद ये स्पष्ट था कि अभी संभावनाएं हैं।
किस चीज़ की, ये पता नहीं,
लेकिन इतना ज़रूर है
कि तुम्हारे आने से अब छत का माहौल बदला सा है,
बाल्कनी अब सूनी नहीं लगती।
मोहल्ला मानो मुकम्मल हो गया हो तुम्हारे आने से,
और मैं भी!!!

पप्पू का सिर फट गया।
नर्स–नाम क्या है?
पप्पू– पप्पू।
*
नर्स–उम्र??
पप्पू–26 साल।
*
नर्स–शादीशुदा हो??
पप्पू– वैसी बात नहीं है।
फिसलकर गिरने से लगी है।


जब आपकी ज़रूरतें कम होंगी ,
तब आपको ज़रुरत से ज़्यादा मिलेगा …

-Guzarr Geya Aj Ka Din Bhii Yoon’Hii Be’Wajah
Naah Mujhe Fursat Milii Naah Usee Khayal Aaya .. ‘

लश्कर भी तुम्हारा है, सरदार भी तुम्हारा है,
तुम झूठ को सच लिख दो, अखबार भी तुम्हारा है..!!