उदास रहता है मोहल्ले मै बारिश का पानी आजकल,
सुना है कागज़ की नाव बनानेवाले बड़े हो गए है!
तहजीब देखता हूँ मैं गरीबों के घर में
दुपट्टा फटा हो फिर भी सर पर होता है
मेरे दिल की ख़ामोशी पर मत जाओ “साहेब*”,
*राख के नीचे ही अक्सर आग दबी होती है*…
*मैंने माँगा था थोड़ा सा उजाला अपनी ज़िन्दगी में*
*चाहने वालो ने तो आग ही लगा दी…!
कुछ फैसलो का क्या बताये हाल ।
दूसरो की ख़ुशी की कीमत अपने आंसुओ से चुकानी पड़ती है ।
नाराजगी चाहे कितनी भी क्यो न हो तुमसे
तुम्हें छोड़ देने का ख्याल हम आज भी नही रखते_!!!
मुझे मालूम है कि ये ख्वाब झूठे हैं और ख्वाहिशें अधूरी हैं…
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मगर जिंदा रहने के लिए कुछ गलतफहमियां जरूरी हैं…!!
सुनसान सी लग रही है , आज ये शायरों की बस्ती….*
*क्या किसी के दिल मे , अब दर्द नहीं रहा.
लोग तो वही रहते है बस
वक्त के साथ उनका बर्ताव बदल जाता है
*खुद बीमार होकर भी पूछती है तबीयत मेरी…*
*माँ कमजोर है थोड़ी लेकिन मजबूत बड़ी है
सुनो एक अजीब सी चुभन होती है..!!
जब मेरे सिवा कोई तुम्हारा नाम लेता है.
लड़कियाँ खिलौना नही होती… जनाब..
पिता तो यूँ ही प्यार से गुड़िया कहते हैं
कितना अच्छा होता…तुम जो मतलबी होते…
और तुम्हें सिर्फ….मुझसे ही मतलब होता…
एक गलत इन्सान की वजह से कभी कभी,
हमें पूरी दुनिया से नफरत हो जाती है !!
हादसे तो और भी हुए है मेरे साथ जिंदगी में,
मगर मुझे रूह से मार गया तेरा छोड़ जाना !!
मोहब्बत का इजहार करके मेरे दर्द को बेघर ना कर…
ताउम्र काटी है इसने मेरे सीने में रह कर…..।।।।”