~Kabhi Tanhayii Kabhii Tarap Kabhi Bebasi To Kabhi Intazaar,
Ye Marz Bhi Kya Khoob Hain Jiise Log Mohabbat Kahte Haiin .. ‘
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~Kabhi Tanhayii Kabhii Tarap Kabhi Bebasi To Kabhi Intazaar,
Ye Marz Bhi Kya Khoob Hain Jiise Log Mohabbat Kahte Haiin .. ‘
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जिंदगी शुरू होती है रिश्तों से,
रिश्ते शुरू होते है प्यार से,
प्यार शुरू होता है अपनों से,
और अपने शुरू होते हैं आप से।
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Dil के दरवाजे पे
एक चौकीदार बेठा है पगली,
जो तेरे अलावा किसी ओर को
घुसने ही नही देता
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न तुम मुस्कुराते, न ये बात होती
न तुम पास आते, न मुलाकात होती
न तुम साथ चलते, न बरसात होती
न तुम यूँ पलटते, न ये राह खोती।
शुभ पुरोहित
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वो सज़दा ही क्या जिसमे ,
सर उठाने का होश रहे ,
इज़हारे इश्क़ का मज़ा तो तब है
जब मै खामोश रहूँ , और तू बैचेन रहे.
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Nasha Tha Unke Pyar Ka ,
Jiss Mein Hum Kho Gaye ,
Unhi Bhi Nahi Pata Chala,
Ke Kab Hum Unke Ho Gaye
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~सुनो बुरा ना मानो तो मै एक बात कहूँ ..
मुझे तुम्हारी ज़रूरत है जिन्दगी के लिये .. ^
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तेरी धड़कन ही ज़िंदगी का किस्सा है मेरा,
तू ज़िंदगी का एक अहम् हिस्सा है मेरा..
मेरी मोहब्बत तुझसे, सिर्फ़ लफ्जों की नहीं है,
तेरी रूह से रूह तक का रिश्ता है मेरा..!!
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~Chalo Accha Hua Ke Dhund Parney Lagi,
Warna Dur Tak Takti Thi Niighein Raah Terii .. ‘
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~Woh Acha Haii Toh Behtar Bura Haii Toh Bhii Qabool,
Mizaaj’E-Ishq Meiin Aib’E-Yaar Nahi Dekhey Jatey .. ^
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तुम्हे पहली बार मैंने तब नोटिस किया था,
जब किसी शाम तुम एक सब्ज़ी वाले से झगड़ा कर रही थी।
उसे डांटते वक़्त तुम्हारी आवाज़ इतनी तेज़ थी
कि मुझे मेरे कमरे तक सब सुनाई दे रहा था।
जब मैं बालकनी में आया तो तुम्हारा गुस्से से लाल चेहरा
देख हाथ बाँध कर आनंद लेने लगा।
दाँत पीस कर जिस
तरह तुम उस सब्जी वाले से उलझी थी,
मैं तो वही देख कर बिछ गया था।
तुम्हारे घर से अक्सर पुराने गीत की मधुर ध्वनियाँ मेरे
कमरे तक सुनाई देती है।
“माँग के साथ तुम्हारा मैंने..,
ढल गया दिन..,
मेरे साजन..”
मतलब गज़ब प्लेलिस्ट है तुम्हारी,
हू-ब-हू मेरी प्लेलिस्ट की तरह। बस मैं किशोर को थोड़ा ज़्यादा prefer करता हूँ।
थोड़ा स्पष्ट सुनने के लिए अब मैं बालकनी में आ गया
था।
तुम चाय का कप लिए नीचे खेल रहे बच्चों को देख रही थी।
शायद तुम इस बात से बेफिकर थी कि मैं
बगल खड़ा तुम्हें देख रहा था।
या यूँ कहूँ कि घूर रहा था।
तुम एकदम से मेरी ओर मुड़ी
और मैंने भी कितनी
स्फूर्ति से अपनी आँखों को तुमसे हटाकर दूसरी तरफ
देखने का नाटक किया।
शायद ये सही मौका नहीं था बात करने का।
या शायद इससे अच्छा मौका न मिलता।
एक आदर्श मोहल्लावासी होने के नाते मैंने अपनी
मौजूदगी दर्ज करानी चाही ही थी कि तुम्हारी माता जी ने तुम्हे आवाज़ लगा दी।
और तुम अंदर चली गयी।
इसके बाद कभी कोई ठीक ठाक मौका
ही नहीं मिला तुमसे मुखातिब होने का।
फिर एक दिन मैं छत पर लैपटॉप लिए बैठे जाने क्या
कर रहा था,
कि तुम भी एक हाथ में बाल्टी, दुसरे में चिमटियां थामे छत पर आ गयी।
और एक-एक करके
कपड़े फैलाने लगीं तारों पर।
जितनी बार तुम कपड़े
तारों पर डालने से पहले उन्हें झटकती,
उतनी बार तुम्हारी चूड़ियाँ झनझना उठती थी।
उसका शोर पूरी छत पर गूँजता रहा था।
एकदम हाय-हुक-हाय-
हाय वाले गाने की फीलिंग आ रही थी।
तभी मेरी फोन की घंटी बजी
और तुमने देखा की मैं भी वहाँ
चोरों की तरह बैठकर,काम करने की एक्टिंग कर रहा हूँ।
तुम सकपका गयीं।
लेकिन मैंने माहौल पे पकड़
बनाये रखने के लिए तुरंत बोल दिया..
“आज धूप बहुत तेज़ है न!”
“हाँ, सो तो है।
लेकिन क्या किया जाए,
कपड़े तो धुलने ही पड़ेंगे।”
“ये बात तो है,
कोई मदद करूँ आपकी?”
“कपड़े धोने में? ”
“अरे मतलब कपड़े सुखाने में ”
“अरे नहीं मैं कर लूँगी”
“वैसे आपको किसी भी तरह की ज़रूरत हो तो बता
सकती हैं आप, बेझिझक।”
“जी बिलकुल ”
हालाँकि ये एक बहुत औपचारिक वार्ता थी,
लेकिन इस वार्ता के बाद ये स्पष्ट था कि अभी संभावनाएं हैं।
किस चीज़ की, ये पता नहीं,
लेकिन इतना ज़रूर है
कि तुम्हारे आने से अब छत का माहौल बदला सा है,
बाल्कनी अब सूनी नहीं लगती।
मोहल्ला मानो मुकम्मल हो गया हो तुम्हारे आने से,
और मैं भी!!!
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हम समझदार भी इतने है की उनका झूठ पकड़ लेते है,
पर उनके दीवाने 😍भी इतने है की फिर भी सच मान 🙂लेते है !!
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मैंने अपनी हर एक सांस तुम्हारी गुलाम कर रखी है,
लोगो में ये ज़िन्दगी बदनाम कर रखी है,
अब ये आइना भी किस काम का मेरे,
मैंने तो अपनी परछाई भी तुम्हारे नाम कर रखी है.
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~ Abhii Toh Chand Lafzo’n Meiin Samaitah Haii Maiine Tumhe ,
Abhii Merii Kiitabo’n Meiin Terii Tafseel Bakii Haii .. ‘
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वो लाख तुझे पूजती होगी। मगर तू खुश न हो ए खुदा,
वो पगली मन्दिर भी जाती है तो बस मेरी गली से गुजरने के लिए.
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अगर इश्क हुआ अगले जनम भी तो तुझसे ही होगा,
मेरे इस नादान दिल को तुझ पर भरोंसा ही इतना है !!
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