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तेरी तो फितरत थी सबसे मोहब्बत करने की.
हम तो बेवजह खुद को खुशनसीब समझने लगे



जिन्दगी में सताने वाले भी अपने थे,
और दफनाने वाले भी अपने थे.

अब इतना भी सादगी का ज़माना नहीं रहा …!!
क़े तुम वक़्त गुज़ारो और, हम प्यार समझें,

तेरी जुदाई का शिकवा करूँ
भी तो किससे करूँ।
यहाँ तो हर कोई अब
भी मुझे तेरा समझता हैं…!!


जरा तो शर्म करती तू पगली.
मुहब्ब्त चुप चुप के और नफरत सरे आम.

‘मयखाने’ लाख बंद कर ले ‘जमाने’ वाले.
‘शहर’ में कम नही ‘नजरो’ से पिलाने वाले.


जरा तो शर्म करती तू पगली.
मुहब्ब्त चुप चुप के और नफरत सरे आम.


जुबां कह न पाई मगर आँखे बोलती ही रही.
कि मुझे सांसो से पहले तेरी जरूरत है.

बहुत जुदा है औरो से मेरे दर्द की कहानी.
जख्म का कोई निशाँ नहीँ और दर्द की कोई इँतहा नही.

तेरी बेरुखी ने छीन ली है शरारतें मेरी,
और लोग समझते हैं कि मैं सुधर गया हूँ..!


‘बड़ी बारीकी से तोडा है, उसने दिल का हर कोना,

मुझे तो सच कहुँ, उस के हुनर पे नाज़ होता है…!


बहुत शौक से उतरे थे इश्क के समुन्दर में..!!
एक ही लहर ने ऐसा डुबोया कि आजतक किनारा ना मिला.!!

इश्क करने चला है तो कुछ अदब भी सीख लेना,
ए दोस्त
इसमें हँसते साथ है पर रोना अकेले ही पड़ता है.


वो भी आधी रात को निकलता है और मैं भी,
फिर क्यों उसे “चाँद” और मुझे “आवारा” कहते हैं

बस यही सोच कर हर तपिश में जलते आये हैं,
धूप कितनी भी तेज़ हो समंदर सुखा नहीं करते…

मौत भी अजीब चीज़ है मरने के लिये
साली पूरी ज़िन्दगी जीनी पड़ती हे….