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वो भी आधी रात को निकलता है और मैं भी,
फिर क्यों उसे “चाँद” और मुझे “आवारा” कहते हैं



मौत भी अजीब चीज़ है मरने के लिये
साली पूरी ज़िन्दगी जीनी पड़ती हे….

दोस्तो से अच्छे तो मेरे दुश्मन निकले,,
कमबख्त हर बात पर कहते हैं कि तुझे छोडेंगे नहीं.

बस यही सोच कर हर तपिश में जलते आये हैं,
धूप कितनी भी तेज़ हो समंदर सुखा नहीं करते…


आग लगना मेरी फितरत में नही पर लोग
मेरी सादगी से ही जल जाये उस में मेरा कया कसूर!✅

मरने का मज़ा तो तब है,
जब कातिल भी जनाजे पे आकर रोये.


बिना मतलब के दिलासे भी नहीं मिलते यहाँ ,
लोग दिल में भी दिमाग लिए फिरते हैं !!


लश्कर भी तुम्हारा है, सरदार भी तुम्हारा है,
तुम झूठ को सच लिख दो, अखबार भी तुम्हारा है..!!

इश्क करने चला है तो कुछ अदब भी सीख लेना,
ए दोस्त
इसमें हँसते साथ है पर रोना अकेले ही पड़ता है.

बहुत शौक से उतरे थे इश्क के समुन्दर में..!!
एक ही लहर ने ऐसा डुबोया कि आजतक किनारा ना मिला.!!


‘बड़ी बारीकी से तोडा है, उसने दिल का हर कोना,

मुझे तो सच कहुँ, उस के हुनर पे नाज़ होता है…!


तेरी बेरुखी ने छीन ली है शरारतें मेरी,
और लोग समझते हैं कि मैं सुधर गया हूँ..!

बहुत जुदा है औरो से मेरे दर्द की कहानी.
जख्म का कोई निशाँ नहीँ और दर्द की कोई इँतहा नही.


जुबां कह न पाई मगर आँखे बोलती ही रही.
कि मुझे सांसो से पहले तेरी जरूरत है.

जरा तो शर्म करती तू पगली.
मुहब्ब्त चुप चुप के और नफरत सरे आम.

‘मयखाने’ लाख बंद कर ले ‘जमाने’ वाले.
‘शहर’ में कम नही ‘नजरो’ से पिलाने वाले.