छोटा सा सपना है मेरा, जो रोटी में खाऊ वो तू बनाये..
Ek tera noor hi kaafi h.. Sare jhaa ki roshni k liye
लोगो के तो दिन आते है पर . हमारा तो जमाना आएगा
कोई नहीं बचाकर रखना चाहता है यादें जान से प्यारे खत बेरुखी से जलने लगे हैं !!
~Hasrat’E-Deedar Bhii Kya Cheez Hyy, Wo Samne Aye To Musalsal Dekha Bhi Nahi Jata .. ‘
सुख मेरा, काँच सा था.. ना जाने कितनों को चुभ गया..!!
चलो मंजूर है तेरी बेरुखी मुझको बस इतना करो कि बेवफा मत होना
एक मशविरा चाहिए, ख़ुदकुशी करूं या इश्क..
~ बड़ा अजीब सा जहर था उसकी यादों का सारी उम्र गुजर गयी मरते – मरते .. ^
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