मत पूछ ज़िंदगी ये बिताई है किस तरह
हर आह मैंने दिल में दबाई है किस तरह
तुम तो दिया जला के मुहब्बत का चल दिये
लौ ख़ूने दिल से हमने बढ़ाई है किस तरह
टूटा जो दिल तो ख़्वाब महल चूर हो गये
सच्चाई मेरे सामने आई है किस तरह
निकला मेरी वफ़ा का ज़नाज़ा कहूँ मैं क्या
काँधे पे अपने लाश उठाई है किस तरह
उठता है दिल के शहर में अब भी कहीं धुआँ
हाथों से अपनी दुनियां जलाई है किस तरह
फैले हमारे इश्क के चर्चे गली गली
यह बात दोस्तों ने उड़ाई है किस तरह
हाथ जब भी दुआ के लिये उठे
तब बेवफा की याद भी आई है किस तरह