कर्जे का कोई मजहब नही होता साहब … कर्जदार अमीर भी होता है और गरीब भी हो सकता है …

लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि कर्ज वापिस ना करने की सूरत में अमीर विदेशों में फाइव स्टार लाइफ जीता है और उसके बच्चे देश में ही ऐश करते हैं …

और गरीब मजबूरी में आत्महत्या करके मरता है और उसके बच्चे भूख से मरते हैं …

हमारे सिस्टम की मेहरबानी से .


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