Preet Singh Leave a comment उल्फत का अक्सर यही दस्तूर होता है! जिसे चाहो वही अपने से दूर होता है! दिल टूटकर बिखरता है इस कदर! जैसे कोई कांच का खिलौना चूर-चूर होता है! Copy