_*लखनवी नजा़कत ….ऊर्दू की ज़बानी…*_

मैंने सुबह सुबह लखनऊ फोन पर एक मित्र से पूछा – क्या कर रहे हो डियर ?

बोला – अभी मैं बड़ी शिद्दत से इज़्जतो-अज़मत की डोर को, बेपनाह उलझनों की गिरफ़्त से आज़ाद करने की कश़मकश में मुब्तिला हूं ।

मैंने कहा – समझा नहीं,

बोला – पाजामे के नाड़े में गांठ पड़ गई है वही खोल रहा हूं


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