अजीब दस्तूर है मोहब्बत का, रूठ कोई जाता है टूट कोई जाता है..
बड़ी बारीक़ी से पढ़ लेते है वो ख़ामोशी मेरी, बार बार यू मुझे अपना बनाना उन्हें बख़ूबी आता है।।
मेरी दास्ताँ-ए-वफ़ा बस इतनी सी है, उसकी खातिर उसी को छोड़ दिया…
छोड़ तो सकता हूँ मगर छोड़ नहीं पाता उसे, वो शख्स मेरी बिगड़ी हुई आदत की तरह है.. …
Keh Do Usse Judaai Azeez Hai To Ruuth Jayein, Woh Jee Saktey Hai To Hum Maarr Bhi Saktey Hai..
किसी से कुछ नही कहूंगा में देख लेना एक दिन यूँही मर जाऊंगा में
तने बुरे ना थे जो ठुकरा दिया तुमने हमेँ. तेरे अपने फैसले पर एक दिन तुझे भी अफसोस होगा!!!
स्कूल तो बचपन मैं जाते थे अब तो बस ज़िन्दगी सिखाती है
भूले हैं रफ्ता-रफ्ता उन्हें मुद्दतों में हम, किश्तों में खुदकुशी का मज़ा हम से पूछिए.
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