सोया रहा नसीब एक अरसे तक, जागने पर जरूरत सी खत्म हो गई अब
नफ़रत करना तो कभी सिखा ही नहीं,,, हमने दर्द को भी चाहा है अपना समझ कर… :))
हाथ की लकीरें भी कितनी अजीब हैं, हाथ के अन्दर हैं पर काबू से बाहर…
जब आपकी ज़रूरतें कम होंगी , तब आपको ज़रुरत से ज़्यादा मिलेगा …
सोचा था आज कुछ तेरे सिवा सोचूँ तब से सोच में हूँ कि और क्या सोचूँ
जिंदगी की उलझनों ने मेरी शरारतें कम कर दीं, और लोग समझते है कि मैं समझदार हो गया
वहम से भी अक्सर खत्म हो जाते हैं कुछ रिश्ते.. कसूर हर बार गल्तियों का नही होता..
फैंसला छोटा हो या बड़ा गर वक्त पर ना लिया जाये, तो वक्त और इंसान दोनों को बर्बाद कर देता Continue Reading..
तेरी यादोँ के ‘नशे’ मेँ, अब ‘चूर’ हो रहा हूँ, लिखता हूँ ‘तुम्हेँ’ और, ‘मशहूर’ हो रहा हूँ.
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