एक तो सुकुन और एक तुम, कहाँ रहते हो आजकल मिलते ही नही.
मार ही डाले जो बेमौत ये दुनिया वाले हम जो जिंदा हैं तो जीने का हुनर रखते हैं
छोटा सा सपना है मेरा, जो रोटी में खाऊ वो तू बनाये..
वो बड़े घर की थी साहब, . छोटे से दिल में कैसे रहती.
!! वो अब भी आती है ख्वाबों में मेरे.. ये देखने की मैं उसे भूला तो नहीं…..!!
मिट जाते है औरों को मिटाने वाले . लाश कहा रोती है, रोते है जलाने वाले
मुझे रिश्तो की लंबी कतारोँ से मतलब नही , कोई दिल से हो मेरा, तो एक शख्स ही काफी है..।
मैं परेशान था उसकी ख़ातिर, औऱ वो दिल पे हाथ थाम के बैठी थी !!
कुछ नहीँ था मेरे पास खोने को, जब से मिले हो तुम डर गया हूँ मैँ
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