मेरे साँचे में ढल के देख कभी।
तू भी थोड़ा पिघल के देख कभी।
जाति-मज़हब के तंग घेरे से,
यार बाहर निकल के देख कभी।
इस जलन में भी है मज़ा कितना,
तू पतिंगे सा जल के देख कभी।
क्या बतायें की राह कैसी है,
साथ कुछ दूर चलके देख कभी।
तेरी ग़ज़लें भी लोकप्रिय होंगी,
इनके तेवर बदल के देख कभी।