एक महिला की कथा।

पिछले हफ्ते मेरी दाढ़ में दर्द हुआ और मैं जिंदगी में पहली बार दाँतों के डॉक्टर के पास गई।

रिसेप्शन में बैठे बैठे मेरी नजर वहाँ दीवार पर लगी डॉक्टर की डिग्री पर पड़ी और उसपर लिखे डॉक्टर के नाम को पढ़ते ही मानो मुझपर बिजली गिर पड़ी।

” कृष्णकांत नंदकिशोर प्रधान ”
यानी, स्कूल के दिनों का हमारी क्लास का हीरो। गोरा-नारा, ऊँचा-पूरा, घुँघराले बालों वाला खूबसूरत लड़का।

अब झूठ क्या बोलूँ…क्लास की दूसरी लड़कियों के साथ साथ मैं खुद भी मरती थी, किशना पर।

मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई।
मेरा नंबर आने पर मैंने धड़कते दिल से, किशना के चेम्बर में प्रवेश किया। उसके माथे पर झूलते घुँघराले बाल अब हट चुके थे, गुलाबी गाल अब फूलकर गोल गोल हो गए थे, नीली आँखें मोटे चश्मे के पीछे छुप गईं थीं लेकिन फिर भी किशना बहुत रौबदार लग रहा था।

लेकिन उसने मुझे पहचाना नहीं।

मेरी दाढ़ की जाँच हो जाने के बाद मैंने ही उससे पूछा,
” तुम गोवर्धन स्कूल में पढ़ते थे ना ?? ”

वो बोला—” हाँ। ”

मैंने पूछा—” 10 वीं कब निकले ? 1976 में ना ? ”

वो बोला—” करेक्ट! लेकिन आपको कैसे मालूम ? ”

मैंने शरमाते हुए जवाब दिया—” अरे, तुम मेरी ही क्लास में थे। ”

फिर
वो
टकला,
चश्मिश,
ढक्कन,
मोटू,
साला,
मुझसे बोला……
” आप कौनसा सब्जेक्ट पढ़ाती थीं, मैडम जी ?? “


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