Preet Singh Leave a comment *घुंघरू* की आवाज दिन में सुनायी दे तो कितनी *मधुर* लगती है किन्तु वही आवाज *अचानक* रात को *सुनायी* दे जाये तो *हनुमान चालीसा* याद आ जाती है Copy