एक बार की बात है, एक पागलखाने के सामने किसी इंजीनियर की कार पंचर हो गयी।

कार को रुकते देखकर पागलखाने की दिवार से झांकते हुए एक पागल ने पूछा, ‘ओ भाई साहब, क्या हुआ?’

इंजीनियर ने जवाब दिया, ‘कुछ नही’।

उस इंजीनियर ने कार से उतर कर पहिया बदलने के लिये पंचर वाले पहिये के चारो बोल्ट निकाले ही थे कि भैंसो का झुंड आ गया।

इंजीनियर उठ कर एक तरफ खडा हो गया।

जब भैंसे चली गयी वह वापिस टायर लगाने के लिये आ गया।

परंतु उसने देखा, चारो नट-बोल्ट गायब थे। वह परेशानी से इधर-उधर ढूढने लगा।

वह पागल तब तक वही खडा था। उसने फिर पूछा,:- ‘भाई साहब क्या हुआ’?

इंजीनियर ने फिर वही जवाब दिया, ‘कुछ नही’। फिर वह बोल्ट ढूढने लगा।

थोडी देर बाद पागल ने फिर पूछा:- ‘अरे,बताइये ना, क्या हुआ, मैं आपकी कुछ मदद करूँ क्या’?

इंजीनियर ने सोचा, ये पागल ऐसे ही दिमाग खायेगा, वह गुस्से से बोला:— ‘तुम जाओ भाई, मेरी कार के चारो बोल्ट गुम हो गये है, परेशान मत करो’।

पागल बोला:- ‘अरे, दिमाग नही है क्या? पागलो की तरह परेशान क्यो हो रहे हो, बाकी के तीन पहियो से एक-एक बोल्ट निकाल कर इस पहिये मे भी तीन बोल्ट लगा लो आगे जाकर दुकान से चार बोल्ट खरीद कर चारो मे एक-एक लगा देना।

इंजीनियर ने उस पागल से कहा:- “अरे वाह क्या आईडिया दिया है! पर तुम्हें पागल खाने में क्यों रखा है, तुम तो काफी अक्लमंद लगते हो.”

तब पागल बोला:- भाई साहब में पागल हूँ इंजीनियर नही


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