संता का गला बैठ गया, बहुत कोशिश की पर आराम नहीं मिला।
रात के दो बजे तंग आकर अपनी बीवी से बोला, “कुछ समझ में नहीं आ रहा है क्या करूँ?”
बीवी बोली, “इसमें शर्माने की क्या बात है सामने ही तो डॉक्टर का घर है, चले जाओ।”
संता बोला, “रात के दो बजे किसी के घर जाते हुए अच्छा नहीं लगता।”
बीवी: डॉक्टर का फ़र्ज़ होता है कि मरीज को देखना और ठीक करना, रात हो या दिन हो कोई मतलब नहीं होता इसमें, आप जाओ।
संता ने इस बात को सोचा और परेशानी की हालत में सामने वाले फ़्लैट में पहुँच के दरवाज़ा खटखटाया।
अंदर से डॉक्टर की बीवी ने पूछा, “कौन है?”
संता गले की बैठी हुई आवाज़ में बोला, “मैं हूँ आपका पड़ोसी, डॉक्टर साहब हैं?”
अंदर से डॉक्टर की बीवी की सेक्सी आवाज़ आई, “नहीं हैं, आ जाओ।”