एक बुज़ुर्ग ने लिखा है के दो चोर खड़े थे इतने में उनके सामने से एक शख्स हाथ में अपने गधे की लगाम थामे गुजरा। एक चोर ने दूसरे से कहा में इस शख्स का गधा चुरा सकता हूँ और उसको खबर भी नही होगी। दूसरे चोर ने कहा ये कैसे हो सकता है ? जबक़े लगाम उसके हाथ में है पहले चोर ने कहा ये गाफिल है (यानी ऐसा शख्स है जो अपनी सोचों और खयालात में गुम होने की वजह से इर्द गिर्द से बेखबर हो जाता है)
चुनांचे वह चोर उस गधे वाले के पीछे गया और गधे की गर्दन से रस्सी खोलकर अपने गले मे डाल दी और अपने साथी दूसरे चोर को इशारा किया के गधा ले जाकर दौड़ जाए, चुनांचे दूसरा चोर गधा लेकर चला गया।
“पहला चोर कुछ देर तक चलता रहा फिर रुक गया गाफिल ने रस्सी खींची मगर चोर खड़ा रहा गाफिल ने पीछे देखा और हैरान रह गया: कहने लगा मेरा गधा कहाँ है ? चोर ने कहा गधा कहाँ था ? वह में ही था! मेने अपने वालिदैन की नाफरमानी की थी जिसकी वजह से में गधा बन गया था। अब मेरे वालिदैन ने मुझे माफ़ कर दिया है और में फिर से इंसान बन गया हूँ।
गाफिल ने अफसोस का इज़हार कीया के में इतने अर्से तक एक इंसान से खिदमत लेता रहा हूँ। चोर से माफी मांगी और उसे छोड़कर चल दिया।
कुछ दिनों के बाद वह गाफिल गधा खरीदने की गर्ज से बाजार गया और ये देख कर फिर हेरत ज़दाह रह गया के उसका अपना गधा वहां बिकने की गरज से मौजूद था।
गाफिल गधे के करीब गया और उसके कान में कहने लगा “बेवक़ूफ़ फिर वालिदैन की नाफरमानी” कर डाली!