Preet Singh Leave a comment *उर्दू की खूबसूरती* *बेगम साहिबा* : क्या कर रहे हो ? *नवाब साहब* : इज़्जत की डोर को, उलझनों की जकड़ और कश़मकश से आज़ाद कर रहा हूं … *बेगम* : मतलब ??? *नवाब साहब* : पाजामे के नाड़े में गांठ पड़ गई है, खोल रहा हूँ . Copy