एक गाँव में एक बहुत पुराना विराट वृक्ष था।उसमें तरह तरह के विषैले सर्प रहा करते थे…. जो वहां से निकलने वाले पथिकों को काट लिया करते थे गाँव के लोग परेशान रहने लग गए क्योंकि उस गाँव का मुख्य मार्ग वही था फिर एक दिन पंचायत में तय हुआ की इस वृक्ष को काट दिया जाए और फिर शुरू हुआ गाँव को उस वृक्ष से आज़ाद कराने का आंदोलन। उस वृक्ष को काटने जो भी व्यक्ति जाता कुल्हाड़ी से एक दो वार करता तब तक उसे सर्प काट लेता और वो मर जाता था। लेकिन गाँव वालों ने हिम्मत नहीं हारी….बीसियों साल तक सतत प्रयास होता रहा कई लोग मौत की नींद सोते रहे परंतु कुल्हाड़ियों के निरंतर वार से वह वृक्ष इतना कमजोर हो गया की बस आज गिरा या कल गिरा…. गाँव वाले इस बात से अनभिज्ञ थे क्योंकि वृक्ष झाड़ियों से घिरा हुआ था। एक दिन गाँव में दो कौवे आये और उसी वृक्ष पर बैठ कर जोर से काँव-काँव करने लग गए चूंकि पेड़ कमजोर हो गया था जिसके कारण वह उसी समय गिर गया और गाँव के अनपढ़ भोले भाले लोग उन कौवों को भगवान का भेजा हुआ दूत समझ बैठे और पेड़ गिराने का सारा श्रेय अपनी जान देने वाले उन शहीदों को न देकर उन दोनों कौवो को देने लग गए।

नोट :- उपरोक्त कथा का हिन्दुस्थान के स्वतंत्रता आंदोलन से कोई सम्बन्ध नही हैं।


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