सांपो के मुक्कदर में.. वो जहर कहाँ, जो आजकल इन्सान सिर्फ बातों मे ही उगलतें है।
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एक तरफ आँखें है जिनमें नीदें भरी है… दूजी पलकें है जो इंतजार की जिद पे अडी है
उसे अपना कहने की बड़ी तमन्ना थी दिल मे, इससे पहले बात लबो पर आती वो गैर हो गये ॥
मैं मोहब्बत करता हूँ तो टूट कर करता हुँ… ये काम मुझे जरूरत के मुताबिक नहीं आता….
जिंदगी भी अजीब है जैसे जैसे कम हो रही है वैसे वैसे ज्यादा पसंद आती जा रही है…!!
दिन छोटे और रातें लंबी हो चली है ,मौसम ने यादों का वक़्त बढ़ा दिया।..
कितने ही दिल तोड़ती है ये फरवरी…, ..यूं ही नही बनाने वाले ने इसके दिन घटाये होंगे… )
साजन कोई वकील मुझे ऐसा करा दे,, जो हारा हुआ प्यार मुझे फिर से जिता दे।।
आज दिन में ही रो लिया मैंने……. रात को नींद आ ही जायेगी…??
