फिर से बुनने लगे ख्वाब एक नया, जाने कबतक ये सिलसिला चले इंतजार का
Jee karta hai muft me hi use apni jaan de du, Itne masoom kharid’dar se kya len-den karna…
हम तो नरम पत्तों की शाख़ हुआ करते थे. छीले इतने गए कि “खंज़र ” हो गए….
हजार टुकड़े कर दिए उसने मेरे दिल के।।। फिर वो खुद रो पड़ी,,हर टुकड़े पर अपना नाम देख कर।।
एहसान जताना जाने कैसे सीख लिया.. मोहब्बत जताते तो कुछ और बात थी।
वो मेरा हमसफर भी था वो मेरा राहगुजर भी था, मंजिलें ही एक न थीं, दरमियाँ ये फासला भी था।
खुद के खोने का पता ही नहीं चला… , किसी को पाने की ‘इन्तहा’ कर दी मैंने….?
Kya mila unko hamari duniya chhod kar, Khud bhi tanha reh gaye humein tanha chord kar.
सिखा दिया दुनिया ने मुझे अपनो पर भी शक करना मेरी फितरत में तो गैरों पर भी भरोसा करना था..!!
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