ऐ चाँद तू किस मजहब का है . ईद भी तेरी और करवाचौथ भी तेरा
तुम्हे फुरसत हो दुनियां से तो कभी आकर मिलना, हमारे पास सिवा फुरसत के और रह क्या गया है..
बहुत देर करदी तुमने मेरी धडकनें महसूस करने में. वो दिल नीलाम हो गया, जिस पर कभी हकुमत तुम्हारी थी.
उसको भूल जाने की कसम तो खाता हूँ मैं, फिर टपक पड़ते है आँसूं और कसम टूट जाती है !!
~Kabhi Munasib Ho To Hum Se Bhi Hum-Kalam Hona Suna Hai Wafa Ki Batain Bohat Karte Ho .. ^
~Gar Tum Jo Saath Aa Gey Hote, Ziindagi Har Tarah Se Mumkin Thi .. ‘
Woh meri soch k parday mein chupa betha hai,,, main kisi aur ko sochon bhi to sochon kaise….?
ज़िन्दगी बहुत ख़ूबसूरत है, सब कहते थे जिस दिन तुझे देखा, यकीन भी हो गया !!
वहम से भी अक्सर खत्म हो जाते हैं कुछ रिश्ते.. कसूर हर बार गल्तियों का नही होता..
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