तुमसे ऐसा भी क्या रिश्ता हे? दर्द कोई भी हो.. याद तेरी ही आती हे।
दर्द आवाज छीन लेता है ओर खामोशी की कोई वजह नही होती
एम्बुलेंस सा हो गया है ये जिस्म, सारा दिन घायल दिल को लिये फिरता है।
मै और मेरा रब्ब रोज भूल जाते है वह मेरे गुनाहो को मै उसकी रहमतो को
मैं परेशान था उसकी ख़ातिर, औऱ वो दिल पे हाथ थाम के बैठी थी !!
फ़िक्र तो तेरी आज भी है.. बस .. जिक्र का हक नही रहा।
~Umar Bhar Rahugi Gulam Haii Koi Jo Us Sa Mila De .. ‘
मैं बुरा हूँ तो बुरा ही सही… …. कम से कम “शराफत” का दिखावा तो नहीं करता
अंत में लिखी है दोनों की बर्बादी, आशिक़ हो या हो आतंकवादी.
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