शाख से फूल तोड़कर मैंने सीखा.. अच्छा होना गुनाह है, इस जहाँ में..!!
ऐ-दिल ज़रा मालूम तो कर,कहीं वो तो नहीं आ रहें . महफिल में उठा हैं शोर माशाअल्लाह-माशाअल्लाह
जुबान सुधर जाए तो जीवन सुधरने में वक़्त नहीं लगता।
हसरतें आज भी खत लिखती हैं मुझे, पर मैं अब पुराने पते पर नहीं रहती ।।
तेरी तलाश में निकलु भी तो क्या फायदा, तु बदल गया हैं ,खोया नही हैं ।
मुझे रिश्तो की लंबी कतारोँ से मतलब नही , कोई दिल से हो मेरा, तो एक शख्स ही काफी है..।
अंत में लिखी है दोनों की बर्बादी, आशिक़ हो या हो आतंकवादी
आँखों के अंदाज़ बदल जाते हैं जब कभी हम उनके सामने जाते हैं
~Seene Ke Andr Kuch Toot Sa Geya, Haii Dua Kro Kahii Woh Dil Na Ho .. ‘
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