शक तो था मोहब्बत में नुक्सान होगा, पर सारा हमारा होगा ये मालूम न था।
कौन कहता है …, रब नज़र नहीं आता वही नज़र आता है.., जब नज़र कुछ नहीं आता….
यही सोच कर उसकी हर बात को सच मानते थे.. की इतने खुबसूरत होंठ झूठ कैसे बोलेंगे..
कभी झुकने की तमन्ना कभी कड़वा लहजा अपनी उलझी हुयी आदतों पे रोना आया
दुश्मन के सितम का खौफ नहीं हमको, हम तो दोस्तो के रूठ जाने से डरते है !
मन्दिर मस्जिद सी थी मोहब्बत मेरी, बेपनाह इबादत थी फिर भी एक न हो सके
Shikayatein toh bahut hai tujh se eh zindagi… Par tune jo diya…woh bhi bahut toh ko nasseb nahi….
बेवफाई तो सभी कर लेते है जानेमन , तू तो समझदार थी कुछ तो नया करती
Chalo bikharne dete hai zindagi ko Sambhaalne ki bhi to ek hadd hoti hai.
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