Ae gham-e-zindagi na ho naraz, Mujhe ko aadat hai muskuraane ki..
जरूरी नही हर ख्वाब पूरा हो… सोचा तो उसे ही जाता है जो अधूरा हो….”
बुराई को खत्म करने निकले तो अच्छाई चार कदम ओर आगे निकल गई…
छोडना पडा उन्हे इतनी मोहब्बत कर के भी, मैंने ‘उन्से’ प्यार किया था, उन्के बदलते हूए ‘चेहरो’ से नहीं….
चेहरे अजनबी हो भी जायें तो कोई बात नहीं लेकिन, रवैये अजनबी हो जाये तो बड़ी तकलीफ देते हैं…….!!
मन्दिर मस्जिद सी थी मोहब्बत मेरी, बेपनाह इबादत थी फिर भी एक न हो सके
Talkh itni thi ky peeny sy zuban jalti thi Zindagi aankh ky pani mein mila li main ny…!!!
गुज़र गया दिन अपनी तमाम रौनके लेकर. ज़िन्दगी ने वफ़ा कि तो कल फिर सिलसिले होंगे.
खेलने दो उन्हें जब तक जी न भर जाए उनका.,…, मोहब्बत 4 दिन की थी तो शौक कितने दिन का Continue Reading..
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