शायद मुझे सुकून तेरे पास ही मिले… मुझको गले लगा बहुत बेक़रार हूँ……..
मेरा “मैं” हरपल “हम” में बदलता रहा… और तुम बे-परवाह “तुम” में ही रही…
वक्त निकाल कर अपनों से मिल लिया करो, अगर अपने ही ना होंगे तो, क्या करोगे वक्त का ???
ए मुसीबत जरा सोच के आन मेरे करीब, कही मेरी माँ की दुवा तेरे लिए मुसीबत ना बन जाये.
उसे किस्मत समझ कर गले से लगाया था हमने, पर भूल गए थे हम किस्मत बदलते देर नही लगती
कटी पतंग का रूख तो था मेरे घर की तरफ . पर उसे लूट लिया ऊँचे मकान वालों ने
Saraha hai hmne tujhe apni sarakho pe; Manga hai hmne tujhe apni hr dUa o mein*………
कमज़ोर पड़ गया है मुझसे तुम्हारा ताल्लुक … या कहीं और सिलसिले मजबूत हो गए हैं..
तुम चलो तो ये ज़मीं साथ दे ये आसमान साथ दे हम चले तो साया भी साथ ना दे
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