आज ताऊ जी गाम तै शहर आरे थे किसी काम तै , साथ मैं उनके तीन दोस्त और थे … काम निम्टा कै म्हारे तै मिलण आगे पापा घर ना थे मन्नैं इज्जत सत्कार तै बैठक मैं बिठाए …
थोड़ी हाण मैं माँ की अवाज आई रसोई मैं तै :- आइए बेट्टा …
मैं गया … माँ बोली :- रुह अफजा बणाई है , या जग अर एक गलास लेजा …
एक गलास … मैं थोड़ा हैरान हो कै बोल्या … चार गलासां मैं घाल दे ना माँ ट्रे मैं रखकै ले जांउगा …
ले कै जा … माँ नैं घुड़की मारी
बुरा सा मुंह बणाकै जग अर गलास ले कै गया …
ताऊ जी के जो दोस्त पहल्ड़े कान्नी बैठे थे … उन्तै गलास मैं घाल कै दिया रुह अफजा … पीकै उन्होनै फेर गलास आगै कर दिया … फेर एक … फेर एक
पूरा जग निम्टा दिया …
मैं रसोई मैं जाकै माँ तै बोल्या :- माँ या सारा जग तो एक ताऊ जी पी गए …
माँ मुस्करा कै बोली :- मन्नै पता था … बेट्टा गाम आले जब मेहनत करदे हाण नां शर्मांदे तो खाण पीण मैं बी वे गिण्ती ना करया करदे … मैं बी गाम की हूं … तेरे मामा हर कदे आवैंगे तो देखिए वे इनके बी ताऊ हैं … या दूसरा जग ले जा जब तक मैं तीसरा जग तयार करुं …