-Qafiila Khushbuon Ka Guzra Haii Tum Kahin Aas Paas Ho Shayad .. ‘
न गवाह मिलते है न लाशें मिलती हैं इसलिये लोग बेख़ौफ़ एहसासों का क़त्ल कर देते हैं
तुम्हे क्या पता की किस दर्द में हूँ मैं, जो कभी लिया ही नहीं उस कर्ज में हूँ मैं
जीवन में एक दोस्त कर्ण जैसा भी जरूर होना चाहिए, जो तुम्हारे गलत होते हुए भी तुम्हारे लिए युद्ध करे.
हम गुम थे एक खयाल में इस कदर खुद को ढूंढने का वक्त ही नहीं मिला
जीभ मे हड्डीया नही होती फिर भी जीभ हड्डीया तुडवाने की ताकत रखती है
कौन कहता है कि मुसाफिर ज़ख़्मी नहीं होते, रास्ते गवाह है बस गवाही नहीं देते.
ख्वाहिश नहीं मुझे मशहूर होने की। आप मुझे पहचानते हो बस इतना ही काफी
कुछ नहीं है आज मेरे शब्दों के गुलदस्ते में, कभी कभी मेरी खामोशियाँ भी पढ लिया करो…!
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