koi apna nhi hota ye bhi apno ne hi sikhaya h
मैं रोज अपने खून का दिया जलाऊँगा, ऐ इश्क तू एक बार अपनी मजार तो बता
शांखो से टूट जाये वो पत्ते नही हे हम , इन आंधीयों से केहदो जरा अपनी औकात में रहे ।
ज़िंदगी भर मौत के लिए दुआ करते रहे खुद से.. और जब जीना चाहा तो दुआ क़बूल हो गई…!!
साझेदारी करो तो किसी के दर्द के साथ, क्योंकि खुशियों के दावेदार तो बहुत हैं।
यहाँ मेरा कोई अपना नहीं है….. . …..चलो अच्छा है कुछ ख़तरा नहीं है !!
जो भी आता हे समजा के चला जाता हे………. पर कोई समझने वाला नही मिलता
कैसे सोऊ सुकून की नींद में साहब… सुकून से सुलाने वालों के तो शव आ रहें हैं..
जरा तो शर्म करती तू पगली. मुहब्ब्त चुप चुप के और नफरत सरे आम.
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