कुछ वक़्त मिल ही गया आज,बीते वक़्त से गुफ्तगू करने को
कुछ पन्ने अपनी ही किताब के,पीछे पलट के पढ़ने को
कभी मुस्कराहट आई लबों पे ,कभी आँखे नम नज़र आई
और जब आया ज़िक्र तेरा तब एक अजीब सी ख़ामोशी थी छायी
दिल को तब भी समझाया था,किसी तरह आज भी मना ही लूँगा
अगर फिर कभी याद आई तेरी ,तो इन पन्नों को फिर पलटा लूंगा
अगर फिर कभी याद आई तेरी ,तो इन पन्नों को फिर पलटा लूंगा…..


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