एक जाट की छोरी के ब्याह मैं फेरे
होण लाग रे
थे |
पण्डितआँख मींच क मंतर पढ़ क
बोल्या “ॐ गन गणपते नमह |
51 रुपे दक्षिणा समर्पियामी ”
नु कह क जाट त बोल्या धर 51 रुपे
गणेश जी प
| जाट ने 51 रुपे धर दिए |
फेर आँख मीच क और मन्त्र पढ़न लगगया |
थोड़ी हान पाछे फेर बोल्या “ॐ गन
गणपते
नमह |
101 रुपे दक्षिणा समर्पियामी ”
धरो 101 रुपे गणेश
जी प |
जाट ने 101 रुपे धर दिए | फेर आँख
मीच क और
मन्त्र पढ़न लगगया |
थोड़ी हान पाछे फेर बोल्या “ॐ गन गणपते
नमह |
151 रुपे दक्षिणा समर्पियामी ”
धरो 151 रुपे
गणेश
जी प | जाट ने 151 रुपे फेर धर दिए |
पण्डित आँख मीच क और मन्त्र पढ़न
लगगया | जाट नै सोची भी पंडित

कत्ती लूट क छोड़े गा |
इब के ने जाट ने गणेश जी की मूर्ति ठा क जेब में
रख
ली |
पंडित फेर बोल्या “ॐ गन गणपते
नमह |
201 रुपे दक्षिणा समर्पियामी ” धरो 201 रुपे
गणेश जी प अर
आँख
खोल क
देख्या; त गणेश जी गायब थे | पंडित
बोल्या –
चोधरी साहब ये गणेश जी कित गए
| जाट बोल्या – पंडित जी देश मे और
भी त ब्याह
सं
एकला मेरी बेटी काये थोडा स |
हो सके स किसे और के फेरां प चले
गए हों.


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